Friday, November 22, 2013

हसना चाहती हूँ मै ;
दिल खोल कर ,
उड़ना चाहती हूँ ,
मै बेलगाम होकर,
इन हवावों में पंक्षियों कि तरह ,
अपनी हर एक शरारत से चिढ़ाना चाहती हूँ मै सबको ,
पागलपंती कि हदें लांगकर ,
दौड़कर ज़िन्दगी जी लेने को मेरा मन चाहता है ,
दिल के हर तार को आवाज देकर एक नयी धुन छेड़ना चाहती हूँ मैं ,
बेवजह मोहब्बत करने वाला मिले तो सही दिल उसी के नाम कर देना  चाहती हूँ  मै ,
खामोश रहकर भी जो सबकुछ बयां कर दे ,
उसी कि आँखों से बाते करना चाहती हूँ मै ,
बस उसके दिल के इसी अहसास को अपनी मासूमियत से महसूस करते हुए ,
उसकी बाँहों में महफूज़ ज़िन्दगी जीना चाहती हूँ मै। …।

vibgyor 2013

कभी एक कदम आगे तो कभी एक कदम पीछे , कभी बढ़ता डर , तो कभी बढ़ता भरोसा , कभी डिगता हौसला 3rd सेमेस्टर कि शुरुआत से ही  ये मनःस्थिति  बनी हुई थी। रेडियो स्टोरी टेलिंग (गीतों भरी कहानी ) से लेकर शॉर्ट फ़िल्म बनने तक हमे कल कुआ होगा कुछ नही पता रहता था।  विब्ग्योर के आयोजन ने  तो धैर्य और चुनौतियों से लड़ने का एक नया पाठ ही पढ़ा दिया।  गजब  का मानसिक उठापठक।  जीवन में धैर्य का महत्व हमे पता चल रहा था।  हमे कर्ता नही बनना चाहिए।  ज़िन्दगी का मजा चीजों के घटित होने में जो है और कही नही।  हमे अगर बनना चाहिए तो एक इमानदार पात्र जो अपने किरदार के साथ न्याय करे और हमारी यही कोशिश होनी चाहिए।
पर हमारा मन नही मानता इसे जैसे ही मौका मिलता है बन जाता है कर्ता बिगाड़ देता है कहानी और हो जाता है कांड।  विब्ग्योर २०१३ फ़िल्म महोत्सव यही तो सीखा के गया हमे  कि हमको अपने काम में नही चूकना चाहिए।  संसाधनो का तकाजा भी कोई मायने नही रखता पेपर वर्क अछा होना चाहिए।  यही तो है ज़िन्दगी जब हम एडजस्ट करके भी अपने मंजिल तक पहुँचते हैं। आशा है इन सभी कठिनाइयों से हमारी ज़िन्दगी और बेहतर होगी।
                                                                                                                                                                                       मेरी डायरी का एक खास पन्ना