Friday, November 28, 2014


वक्त – बेवक्त – वक्त का तकाजा

पिछले कुछ दिनों से ज़िन्दगी की असलियत से रूबरू हो रहा हूँ. कैसे और क्यों इंसान वक्त के फेर में फंसकर निर्णय लेता है. वक्त और हालात ही इंसान को सही और गलत बनाता है. ये बात तब समझ में आती है, जब मारे थकान के लेडीज के कहने पर भी सामने वाला सहयात्री मेट्रो में सीट छोड़ने से मना कर देता है. अब देखने वाले युवक को अभद्र मानेंगे. लेकिन जब इंसान खुद भूखा होगा. तब वो दूसरे को कैसे खाने देगा. कहावत भी है भूखे भजन न होय गोपाला. जो बिलकुल सही है. इस दुनिया में 13.7 प्रतिशत लोग भूख के मारे मर जाते हैं. जो सभ्य मानवता के दम्भ को गहरी चोट देती है. दुनिया के कई ऐसे देश जहाँ लोग खाने के लिए एकदूसरे की जान भी लेने से गुरेज नही करते.  खैर हम अपनी बात बढ़ाने से पहले ऑस्ट्रलियाई ओपनर बैट्समैन फिलिप हुजेस को सर में बाउंसर गेंद लगने से हुई मौत पर उन्हें भावभीनी श्रदांजलि देते हैं. फिलिप अभी काफी युवा क्रिकेटर थे. तीन दिन बाद वो अपना जन्मदिन मनाने वाले थे. लेकिन काल को ये मंजूर नही था. लेकिन इस मौत के गैरइरादतन जिम्मेदार गेंदबाज अबोट का हाल उसी थके हारे युवक की तरह है जो सीट नही छोड़ रहा है. अबोट की इस मौत में कोई गलती नही है. लेकिन बाउंसर उन्ही के द्वारा फेंकी गयी थी. जो मौत का कारण बन गयी जबकि ये उन्होंने पहली बार नही फेंका होगा. लेकिन वक्त और हालात ने उन्हें खुद की नजरों में विलेन बना दिया. और अब आलम ये है की वो सदमे में हैं. क्रिकेट में एक बार वो पुराने जख्म हरे हो गये जब जब खेलते वक्त किसी खिलाडी की मौत हुई है. वहीं भारत में इस धार्मिक क्रिकेट को इन दिनों काफी शर्मशार होना पड़ रहा है. जो क्रिकेट के भक्तों को नागवार गुजर रहा है. लेकिन इन सबों के बीच एक बात साफ़ हुई है की आप बेईमानी करके हासिल तो कुछ भी कर सकते हैं. लेकिन उस चीज को बरकरार रखना ज्यादा भाग्य मांगती है. यहाँ फिर मेरे हिसाब से वक्त तकाजा ही जिम्मेदार है. श्रीनिवासन आज दुनिया के सबसे ताकतवर क्रिकेट संस्था के मुखिया हैं. लेकिन गंदे चोली ने दामन को थामे रखा है. इसके बाद बात मोदी की क्योंकि साल-साड़ी देने लेने वाले आपस में बात करना भी मुनासिब नही समझते सार्क बैठक में नजारा कुछ यूँ ही वक्त ने परोस दिया था. यहाँ नवाज की कोई गलती नही है क्यूंकि असल में वो तो सिर्फ अपने देश के नाम के प्रधानमन्त्री हैं. ये सबको पता है वहां की मिलिट्री अपने बंदूक के नोक पर नेताओं को नचाती है. हर जगह बोलने वाले मोदी को भी पाकिस्तान को भाषण सुनाने पर उन्हें न तो वहां का वोट मिलेगा न ही सपोर्ट. वैसे भी पाकिस्तान को सीधी बात समझ में भी तो नही आती है. उधर राहुल गाँधी इसलिए परेशां हैं क्यूंकि उनकी कोई सुनता नही है. अब सरकार भी नही है की कोई सरकारी बिल वो फाड़ कर फेंक दें. सब वक्त वक्त की बात है.