Wednesday, July 30, 2014

क्या है ई-शासन.....
भारत गाँवो का देश है, देश की ७२ फीसदी आबादी आज भी गांवों में निवास करती है. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 638,387 गांव हैं. ये आबादी ही भारत के भविष्य को तय करती है, अत: सरकारों को अपनी नीतियों के निर्धारण में ग्रामीण विकास को सबसे ऊपर रखना होता है. ग्रामीण विकास में सामाजिक न्याय,आर्थिक विकास और न्यूनतम बुनियादी जरूरतों को पूरा करना ही किसी भी सरकार का कर्तव्य होता है. विविधता से भरे इस देश को आपस जोड़ने के लिए तकनीकी विकास बहुत जरूरी है, जिससे सरकारों को अपने नागरिकों से जुड़ने में आसानी होती है. ग्रामीण विकास की इस वक्त की सबसे बड़ी चुनौती है शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के अवसर, आजीविका के संसाधन, गरीबी उन्मूलन से जुड़े कार्यक्रम और बुनियादी ढांचे में सुधार की. सरकार का मुख्य उद्धेश्य ग्रामीणों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना है. इ-गवर्नेंस यानी इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस जो सरकार की योजनाओं और कामकाज को ग्रामीणों तक सीधे पहुँचाने में एक कड़ी का काम कर रही है. इसमें देश में चल रही सभी योजनाओं को लोगों तक आसानी से पहुँचाने का लक्ष्य है. इस योजना का नाम राष्ट्रीय ई-शासन योजना रखा गया है. जिसमे सरकार की कोशिश ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को सरकार की नीतियों और योजनाओं से जोड़ने का है. योजना का मुख्य उद्धेश्य है सरकारी योजनाओं का गाँव के लोगों तक आसानी से पहुंचाना. सुचना और तकनीकी का बेहतर इस्तेमाल करते हुए विकास के पथ पर चलने में इस योजना का महत्व और बड़ जाता है. इस योजना के अंतर्गत ऑनलाइन सेवायें –
1.आयकर
2.पासपोर्ट/वीजा
3.कंपनी मामले
4.केन्द्रीय उत्पाद शुल्क
5.पेंशन
6.भू-अभिलेख
7. सड़क परिवहन
8. सम्पति पंजीकरण
9. कृषि
10. नगर पालिकाएं
11. ग्राम पंचायतें
12.पुलिस
13.रोजगार कार्यालय
14.ई-न्यायालय

देश के भिभिन्न प्रदेशों में इस योजना को अलग- अलग नामों से जाना जाता है. उत्तर प्रदेश में इस योजना का नाम  लोकवाणी है इसी के माध्यम से प्रदेश के कई महत्वपूर्ण कामों को किया जा रहा है जिसके अंतर्गत आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण, निवास प्रमाण पत्र, बैंक का खाता खुलवाना, वोटर कार्ड, राशन कार्ड और किसानो को घर बैठे मंडी के भाव और उन्नत बीजों की जानकारी बेहद आसानी से प्राप्त हो जाती है. पहले जहाँ इन्ही सारी  चीजों को बनवाने में बहुत सारा भागदौड़ और पैसा लग जाता था वहीं अब ये सारे काम एक ही छत के नीचे एक ही वक्त में आसानी से हो जाती हैं. ग्रामीण सोने लाल से बात करने पर ये पता चलता है की लोकवाणी उनके लिए समय बचाने और उपयुक्त सूचनाएं उपलब्ध करवाने में काफी मददगार है. सत्यप्रकाश सिंह ग्राम प्रधान सौरुपुर श्रावस्ती से बात करने पर ये पता चलता है की ई-शासन से बहुत से कामों को करने में आसानी हुई है, अब हमारे पास ग्रामीण दौड़ा हुआ नही आता है. अब लोकवाणी के माध्यम से हमे लोगों के दस्तावेज मिलते हैं और हम उन्हें सत्यापित करके लोकवाणी केंद्र को ही वापस कर देते हैं. जिससे चीजें साफ़ सुथरी और न्याय संगत बनी रहती हैं. ई – शासन के माध्यम से अब खसरा, खेतौनी, थाने में रिपोर्ट लिखवाना, न्यायालय में अर्जी देना और ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना भी बेहद आसान हो चला है. इस योजना से सरकार को भी बहुत सारी चींजों में आसानी हुई है जैसे लोगों का रिकॉर्ड बनाने में, लोगों के अधिकार और हक सही लोगों के हाथो तक पहुँचाने में और तमाम जानकारी जन जन तक पहुँचाने में भी ये योजना सरकार की मदद करती है.

Friday, July 18, 2014

हमारा पहला टकराव तंत्र से भाग -2


दिन भर इन्तजार करते हुए लगातार दिमाग एक बात सोचता रहता था कि इस देश का कानून वास्तव में अँधा है. पॉवर और सोर्स बाज़ी इसके दो नमूने हैं, जो इसे मजाक और काफी जटिल बनाते हैं. भारतीय पुलिस दुनिया के सबसे भ्रष्ट तंत्र में आती है इसका नमूना पुलिस ने इस मामले में भी पेश किया. जैसे ही थाना परिसर में मैं पहुंचा एक तीन तारे वाले ने मुझे धमकी देते हुए वहां से जाने को कहा, मेरे बाकी दोस्त रस्ते में थे जो पहुँच रहे थे. मेरे मिलने के निवेदन को भी उस दरोगा न ठुकरा दिया. धीरे धीरे हमारे दोस्तों की संख्या बढ़ रही थी. मामला उतना बाधा नही था जितना पुलिस वाले बोल रहे थे. मुझे गुस्सा इस बात की लग रही थी जो पुलिस ने बिना दुसरे पक्ष की बात सुने उन्हें मुलजिम बना कर ले आई थी. शाम ढल रही थी, एक दोस्त की मां भी वहीं आ गयी थी जो काफी परेशां थी. एकलौता बेटा जिससे सारी उम्मीदें ऊपर से लड़का पुलिस कस्टडी में इससे बुरा एक मां के लिए और क्या हो सकता है. एस ओ के आने इन्तजार हो रहा था जो कहीं बाहर निकले हुए थे. कुछ सिपहियों की काना फूसी से पता चला की उनके आते ही हो सकता है इन लोगों को छोड़ दिया जाये. एस ओ लगभग 8 बजे आये और उन्होंने ऊपरी दबाव का हवाला देते हुए अपनी बात रखी की रेखा जी मान नही रही हैं. लेकिन कुछ देर बाद एस ओ के जाते ही हमारे दोस्तों को छोड़ दिया गया. हम लोग काफी खुश थे और वहां से निकल पड़े. ये वक्त था जो काफी शुकून दे रहा था हम लोग खाना खाने निकले. खाना आर्डर करते ही विशाल का फ़ोन आया जो उठाने पर पता चला की थाने से फ़ोन आया है की सब लोग वापस आ जाओ. हम सब चकित थे फिर विशाल को मना करते हुए खाने पर जुट गये दिन भर की भूंख को शांत करने में. लेकिन जब नीतीश और नीरज लगातार फ़ोन करने लगे तो लगा शायद सच में बुलाया जा रहा है. खाना खा कर हम लोग महानगर थाने में पहुंचे जहाँ से एस. ओ. उन लोगों को रात भर गाजीपुर थाने में रुकने को बोल रहा था. पुलिस का कहना था वो सुबह 4 बजे उन्हें यहाँ से छोड़ देंगे. अब बचे हम तो हमने दरोगा से पूछा की हम भी यहाँ रुक सकते की नही तो वो बोले जैसी तुम्हारी इच्छा तो हम भी रुक गये. थाने में पहली बार वो भी बिना किसी जुर्म के एक खास पल को जीने की बेताबी मेरे दिल जरा सा भी खौफ नही चेहरे पर लगातार हंसी जो मेरे दोस्तों के भारी मन को हल्का कर रही थी. १२ बाई 4 के कमरे में हमे रात गुजारनी थी. कमरे में 3 से 4 कंप्यूटर थे, जो सब ऑन थे. एक कूलर और 3 कुर्सियां साथ में एक दरी जिसपर सोने की इजाज़त थी. संघर्ष और नाराजगी के इस लम्हे में भी मुझे मजा आ रहा था क्यूंकि मैं पाक साफ़ था फिर भी उन लोगों के साथ मैं था उनलोगों को भी मौज आ रही थी. पता नही क्यूँ आज क्रांति कारी होने का एहसास हो रहा था. भगत सिंह और चंद्रशेखर की याद रही थी. धीरज पाल को आज अरविन्द केजरीवाल की याद आ रही थी आज उन्हें पता चल रहा था की सिस्टम से लड़ना इतना आसान काम नही है. अचानक एक महिला पुलिस पर नजर पड़ी जो ड्यूटी पर थी. बमुश्किल एक थाने में 4 से ५ ही महिला पुलिस होती बाकी पुरुषों का ही बोलबाला होता है. उनका इन पुरुष साथियों के साथ काम करना काफी मुश्किल होता है ये उनके चेहरे को देखकर मुझे साफ़ पता चला रहा था. उन्हें कुर्शी पर ही सोना होता है और साथ ही साथ उन्हें अपने पुरुष सहकर्मी के मजाक भरी बातों को अवॉयड करना होता है. पुरुष पुलिस आपस में गाली गलौच और घटिया मजाक करते रहते हैं जो उन महिलाओं को मजबूरी में सुनना पड़ता है. ये काफी जटिल होता है जब आप किसी चीज को पसंद नही करते हैं और वही आपके सामने या साथ में घटित हो रहा हो. वैसे दुनिया के सबसे भ्रष्ट तंत्र से आपको अच्छे मजाक की उम्मीद भी नही होनी चाहिए. आज हम पांच लोग एक अलग ही कश्म्कस से गुजर रहे थे और पैसा और पॉवर की ताकत से रूबरू हो रहे थे. कोई जुर्म नही फिर भी फंस जाना युवाओं को उकसाता है. वो युवा चाहे कश्मीर के हों या फिर लखनऊ के हों. आज ये बात भी महसूस हो रही थी की बुरे वक्त कि चोट हमे बुरे कर्म की तरफ धकेलने के लिए जिम्मेदार भी हो सकती है. कश्मीर घटी के युवा क्यूँ बात को हल नही मानते हैं और बन्दूक से अपनी बात मनवाना चाहते हैं क्यूंकि उनकी आवाज को सुनने की जगह दबाने की कोशिश की गयी जो सरासर गलत है. अपने अधिकार की खातिर लड़ना बेमानी नही है. न जाने क्यूँ आज हम खुद को आतंकवादियों के करीब पा रहे थे. धीरे धीरे रात कट रही थी और हमारी सोच फैलती जा रही थी कभी हम महिला कर्मी की मजबूरी तो कभी उस धोखेबाज महिला कर्मी की कारगुजारी को कोस रहे थे. कुछ ख़ास लोगों को मौके पर खामोश रहना भी आज टीस रहा था मनमोहन सिंह की याद आ रही थी. फिर उस दिन का चक्र हमे समय की औकात का अंदाजा लगवा रहा था. माना हम तो पढ़े लिखे लोग हैं तो पुलिस हमे हल्के में नही ले रही थी लेकिन उन गरीबों के ये पुलिस क्या करती होगी इसका अंदाजा आज हम बखूबी समझ रहे थे. आखिर कार सुबह पिकनिक जैसा माहौल था जो किसी भी मामले को दरकिनार कर रहा था. बस बात वहां से निकलने की बची थी जो जल्द ही पूरी होने की उम्मीद थी. जैसे जैसे सूर्य अपनी रौशनी बड़ा रहा था वक्त आज़ाद होने का निकट आ रहा था क्यूंकि नियम भी 24 घंटे से ज्यादा रोकने के खिलाफ था. तो लगभग २:30 बजे एस. ओ. ने हमे वहां से जाने का आदेश दिया. हम सब में मनो ख़ुशी की लहर जैसे दौड़ पड़ी और भूख मानो अपने चरम पर आ गयी हम सब वहां से निकलते हैं. तो ये रही थाने में बिताया गया अपने आप में एक अनोखा पल जो तह ज़िन्दगी ज़हन में बना रहेगा. यादगार रात और यादगार पल जीवन को रोचक बनाते हैं और बार बार नही आते हैं.

Wednesday, July 9, 2014

हमारा पहला टकराव तंत्र से ..... भाग -1 


कहते हैं ज़िन्दगी में  समय के  गर्भ का कोई अल्ट्रासाउंड नही होता है. वक्त कब कौन सा करवट ले ले इसका हम अंदाजा तक नही लगा सकते हैं. हम कभी कभी कर कुछ और रहे होते हैं और घट कुछ और जाता है, साथ ही साथ छप कुछ और जाता है. हमारा प्लान कुछ और होता है और हमको करना कुछ और ही पड़ जाता है. लगभग 15 दिन की छुट्टी बिताकर गाँव से लखनऊ की कूच सुबह 8 बजे करते वक्त अपने दोस्तों को 11बजे तक मिलने का वादा करते हुए अपनी 160 किलोमीटर की मैराथन यात्रा शुरू कर देता हूँ. रास्ता बादलों और मामा के गुस्से की गरज में कट रही थी. मामला वाटर कूलर महंगा लगवा लेने का था साथ उनसे बिना पूछे हुए पैसे का पेमेंट भी कर दिया गया था जो लगभग 76000 था. जो मेरे हिसाब से भी महंगा था और उनका गुस्सा होना लाजिमी था. लेकिन मैं कुछ बोल नही सकता था क्यूंकि भाई को सिर्फ मामा ही डांट सकते थे और मेरे हिसाब से सही ही था. जैसे जैसे हम रामनगर से आगे निकले उनको गुस्सा घाघरा के बहाव में बह चुका था. लगभग 11:30 बजे हम लखनऊ पहुँच गये जहाँ दफ्तरों का निपटाते निपटाते 3 बज गये. खाना आर्डर करने से पहले २:38 पर उन लोगों की आखिरी कॉल आई थी और वो लोग मुझे कैमरे के साथ आने को बोल रहे थे. मैंने उनसे 30 मिनट का वक्त माँगा था. कहना खाने के बाद जब हम मामा से विदा लेकर रूम की तरफ बड़े और उनलोगों को कॉल करना शुरू किया तो उनके नंबर स्विच ऑफ बताने लगे थे. फिर मैंने उन चारो के नंबर पर कॉल किया लेकिन वो सब स्विच ऑफ की मुद्रा में थे. मैं कमरे की तरफ बढता जा रहा था और दिमाग में चीजों का मतलब निकाल रहा था की नंबर स्विच ऑफ क्यूँ जा रहा है. एकबारगी मुझे लगा की वो सब गिरफ्तार तो नही कर लिए गये. क्यूंकि वो लेडीज बाबू और उसके दो सहायक पिछली बार जब हम भी थे साथ में तो उनका टोन थोड़ा हाई था. जो बवाल करवा सकता था. मैं रूम के अन्दर गुसा तो लगा की मैं बहुत तन्हा हूँ यहाँ तो बहुत अकेला हूँ. बैग रखते हुए दिमाग को स्थिर करने की कोशिश कर रहा था जो हो नही रहा था. मैंने बिना कपड़े बदले विकास भवन का ऑटो पकड़ कर वहां पहुंचा वक्त था 4 बजे का बहुत कम लोग बचे थे जो अपनी दिन भर की बातों में मशगूल थे, लेकिन उनके दिमाग पर कोई थकावट नही थी क्यूंकि वो काम ही नही करते हैं. वहीं मिले सीडीओ के चपरासी ने बताया उन चार लड़कों को पुलिस गाजीपुर थाने में ले गयी है. मुझे जो अंदेशा था वही सन्देशा मिला. एक दोस्त जो काफी मददगार रहा और मेरे एक काल पर वो खुद और अपनी बाइक लेकर आ गया और हम थाना गाजीपुर के लिए निकल पड़े. वैसे अपने कसबे के थाने में हम स्चूली दिनों में घूम चुके हैं थाना देखने गये थे एक दोस्त के साथ कि कैसा होता है. आज दरोगा से बात करनी थी मन में हडबडाहट थी की क्या बोले. वहां पहुँचने पर एक सिपाही ने पुछा क्या काम है, तो हमने पूछ लिया दरोगा कौन है यहाँ का मुझे कुछ बात करनी है यहाँ के दरोगा से. दरोगा बोला हाँ बताओ क्या बात करनी है मैं हूँ यहाँ का दरोगा. विकास भवन से आप मेरे चार दोस्तों को पकड़ कर यहाँ लाये हैं. उसने बोला हाँ तुम कौन मैंने जवाब दिया और बोल दिया मैं मनोज तिवारी इन सबका दोस्त. मैंने पुछा क्या किया था जो आप इन्हें यहाँ ले आये. उसने कहा नेता बन रहे हैं और अब जेल जायेंगे. हमने कहा मिल सकते हैं, उसने कहा तुम जाओ नही तुम्हे भी बैठा देंगे, हमे क्यों? तुम्हे इतनी फिक्र जो है उनकी, हमने कहा अच्छा. दो दोस्तों को इन्फॉर्म करते हुए मैं बाहर आया और पैरवी की शुरुआत की. थाने का पहला मामला था मेरा जिसमें मुझे लीड भी करना था. घरवालों से मदद नही ले सकता था अपने दोस्तों से ही उम्मीद थी. हालाँकि मुझे ये पता था और मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ की उन्हें फंसाया जा रहा था.