Sunday, April 27, 2014

दिल लेकर यार दिल दिया जाता है ..... चोरी-चोरी
इतिहास फिल्म का ये गाना काफी रोमांटिक और प्यारा है , लेकिन इसे सुनते हुए मुझे आजकल भारत में हो रहे चुनावों में नेताओं द्वारा किये जा रहे वायदे जैसा लगता है और  अगर इससे  जोडकर देखा जाये तो उसपर ये काफी फिट बैठता है .. जुमला कुछ इस तरह बन रहा है ,, वोट लेकर यार चोट दिया जाता है .... चोरी चोरी .... यूँ तो नेताओं के पास वक्त की कमी होती है पर आजकल वो काफी एक्टिव हैं और सीधे जमीन पर जमीन की तलाश में लगे हुए लोगों को छत देने का वादा तो खुद बंगलो पाने की हसरत है उनके दिमाग में .. जनता को सस्ते से सस्ता खाना देने के वादे भी अपने तोंद को फूलाने की खातिर किये जा रहे हैं .. कुछ तो इन सब बातों को दूर रखे हुए हैं ,उन्हें धर्म और  जाति को लेकर चलने की आदत है भोली प्रेमिका रुपी जनता अपने प्यारे प्रेमी को अपनी हसरतों भरी उम्मीद से वोट देने का फैसला कर रही होती है ... क्यूंकि उसे तो प्यार चाहिए लेकिन निष्ठुर प्रेमी की तरह हमारे नेता सिर्फ बेवफाई के सिवा आज तक जीतने के बाद इनकी तरफ पलट कर नही देखते ... चोरी – चोरी ... विकास के खोखले दावे की दुहाही सिर्फ एक गोली है जो वोटर रुपी प्रेमिका को थमा दिया जाता है ,,इनके विकास के काम सिर्फ और सिर्फ कागजों पर ही होते हैं... पर पेट की मारी जनता को वोट तो किसी को करना ही है और अपना प्रेमी चुनना है ... गाने की आखिरी लाइन में प्रेमी रुपी उम्मीदवार अपनी कसम खाकर कहता है की एक पल भी हम आपसे दूर नही रहेंगे और कोई भी दुःख दर्द होता है तो मिलकर सहेगे.. भोली मतदाता रुपी प्रेमिका इसे सपने की तरह अपने पलकों में सजा लेने की बात करती है और अपना वोट अपने प्रेमी को सौंप देती है .. लेकिन सच्चाई तो ये है की ज्यादातर प्रेमी बेवफा और मतलबी निकलते हैं ... उन्हें सिर्फ वोट से मतलब होता है जो अब मिल चूका होता है भाड़ में जाये जनता पांच साल तक तो हनीमून पीरियड वाला रिचार्ज तो वो करा ही लिए.. कुल मिलाकर अब वोटर को होशियार होना पढ़ेगा उसे नामधारी उम्मीदवार से नही कामधारी उम्मीदवार को वोट करना चाहिए .. धर्म और जाति से आगे बढ़ना चाहिए और विकास , सुशासन और भ्रस्ताचार से मुक्ति दिलाने वाले उम्मीदवार को वोट देना चाहिए ....

नही तो बाकी तो गाना ये हित ही था और फार्मूला वोट पाने वाला भी हिट है ... शायद यही वो वक्त है जो हमे खुद के लिए सही नेता चुनने का मौका देता है और गर्मी के इस मौसम में लोहा गर्म है बस हथौड़े की चोट पूरे दम से पढना चाहिए ...    आखिरी में एक निवेदन पूरी बात समझने के लिए गाना जरूर सुने क्यूंकि मैंने सुनते हुए लिखा है .... चोरी – चोरी ....

Thursday, April 24, 2014

कनकनी धूप हो , शांत समुन्दर हो ,
रोयेदार बारिस हो  , हवा में फूलों की खुशुबू हो  ...
सरगम संगीत हो , न हार हो न जीत हो ,
दिशाओं में सन्नाटा हो , जहाँ कोई न आता जाता हो ....
न भ्रम हो , न किसी को खोने का गम हो ,
नौका ऐसी हो ,जिसमे न पतवार हो ....


Wednesday, April 23, 2014

                      22/4/2014         मेरा यादगार दिन
अगस्त 1997 में गाँव की प्राइमरी पाठशाला से मेरा एडमिशन नजदीकी छोटे से कसबे (इकौना) के एक प्राइवेट स्कूल (मॉडर्न पब्लिक स्कूल ) में कराया गया ... टेस्ट में अच्छे नंबर मिलने की वजह से मुझे डायरेक्ट क्लास 2 में एडमिशन मिल गया ... पांचवी तक टॉप करने के बाद जब ६ में स्कूल बदलने की वजह से टॉप करने की आदत छूट गयी क्यूंकि अब देश दुनिया में ज्यादा और पढाई में मन कम लगने लगा .. क्रिकेट खेलने का शौक ने मुझे कही न कही  पढाई  में औसत कर  दिया.. लेकिन मुझे कभी ये नही लगा की  फला से मुझे कम आता है .. हालाँकि मुझे बात करना है आज पर 17 साल के इस गोल्डन पीरियड अगर मुझे खला तो मास्टर डिग्री की आखिरी क्लास क्यूंकि अब मेरी ज़िन्दगी से मेरा छात्र जीवन विदा ले रहा है ... अब शायद ही मैं  किसी क्लास का छात्र बन सकूँ ! अब तक जो सीखा है उसे दिखाने की बारी अब आ गयी है , थोदा नर्वस हूँ दिल की धडकने बढ़ रही हैं आज कल ! हर कोई कहता है छात्र जीवन ही ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत पल है ...मैं भी मानता हूँ और तहेदिल से स्वीकार भी करता हूँ ... क्यूंकि आज से न अब सुबह क्लास करने के लिए तैयार होना पढ़ेगा ,दोस्तों को परेशां करने का अब शायद ही वक्त मिले , सही गलत का फ़र्क बताने वाला भी अब साथ में नही होगा . अब ज़िन्दगी के सारे  फैसले खुद के तजुर्बे से लेने होंगे न नोट्स की न एग्जाम की चिंता न किसी से कम मार्क्स पाने जलन होगी अपनी प्यारी पीछे वाली सीट भी अब नही होगी .. ज़िन्दगी के दुसरे पढाव की शुरुआत में लटके झटके भी झेलने होंगे जहाँ सिर्फ काम की कीमत होगी ! हर चीज प्रोफेशनली लेना होगा .. भावो को दबाना और काम को पूरण करने की ज़िम्मेदारी होगी ...कैंटीन की चाय तो होगी पर इतने सारे दोस्त नही होंगे पास पैसा होगा पर किसपर खर्च करें वो साथी नही होंगे ... पर ज़िन्दगी तो आगे बढ़ने का नाम है और नवीन बदलाव को आत्मसात करते हमे आगे बढ़ना है .. क्यूंकि बहुत सारी चीजे हमारा इन्तजार  कर  रही हैं जिसे पूरा करना ही हमारी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए ..
एक बात और है जो रुका है वो थमा है तो हमे सिर्फ चलना है और चलते जाना और कर्म को निरंतर करते रहना है ... क्यूंकि समुद्र की लहरें थमती नही हैं इसलिए उसकी विशालता बरकरार रहती है .. बाक़ी तालाब में भी पानी होता है और एक समय आने पर वो सूख जाता है ...



Monday, April 21, 2014

चालीस लोग और चालीस सपने....
मास कम्युनिकेशन में एडमिशन लेने से पहले मैंने mba करने का सोचा था लगभग सबकुछ फाइनल हो चुका था . bba के बाद mba ही सही होता है ऐसा लोगों ने मुझे बताया भी था . लेकिन बचपन का शौक और कुछ समकक्ष साथियों ने मीडिया में भी अच्छे करियर का सुझाव दिया . जो हमे mba से दूर लेकर एक ऐसी क्रिएटिव संसार में ले आया जहाँ मैखुद को ज्यादा विश्वसनीय प् रहा था .. ये वो दुनिया है जहाँ आप किसी की आवाज को दुनिया के सामने लाते हैं .. तस्वीर का दोनों पहलू आपको दिखाना होता है .. लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ की बहुत सारी जिम्मेवारियां तो होती ही हैं साथ ही साथ देश की अदालत की गरिमा को ध्यान में रखते हुए हम यहाँ कोई निर्णय नही सुना सकते हैं ..इस कोर्स में एडमिशन लेते वक्त दिमाग में जो बात गूँज रही थी वो थी ग्लैमर जो लगभग हर छात्र को अपनी तरफ आकर्षित करने में सक्षम थी . लेकिन पहली क्लास करने के बाद ये धारणा टूट गयी हालाँकि ग्लेमर जो दिखता है उसके पीछे बहुत ही होम वर्क होता है ..जमीनी हकीक़त और चकाचौंध में काफी अंतर है .. हर कार्यक्रम और शो के पीछे बहुत ही काम हुआ होता है .. पत्रकारिता और जनसंचार विभाग ,लखनऊ यूनिवर्सिटी में कदम रखते ही ग्लैमर और हकीक़त का फ़र्क समझ में आ गया और दूध का दूध और पानी का पानी हो गया . 40 की संख्या का बैच और उनके चालीस तरह के सपने कोई एंकर , कोई न्यूज़ रीडर कोई मॉडल कोई एक्टर कोई रेडियो जॉकी और बाक़ी ४ ५ लोग हमारी तरह पत्रकार बनना चाहते हैं .. हैरत की बात ये भी है की कुछ लोग टाइम पास करने भी आये हैं ... क्यूंकि कुछ नही मिला मास कम्युनिकेशन में एडमिशन ले लिया .. मजेदार बात ये भी है की कुछ शादी की cv को मजबूती देने के लिए भी दाखिला ले लिए हैं ...खैर ये तो रही पर्सनल राइ लोगो को खुद को लेकर जो बहुत ही मायने रखती है ये से शुरुआत होती बनने और बिगड़ने की .. जिसका गोल क्लियर है वो उसी तरह अपनी तैयारी क्र रहा था .. मैं रेडियो का शौक़ीन था तो रेडियो में जाने की सोच रहा था .. पर २ से ४ क्लास करने के बाद लगा की पहले प्रिंट बाद में इलेक्ट्रॉनिक देख  लिया जायेगा.. अच्छा मेरी प्रायोरिटी बदलने का कारन काफी हद तक परम आदरनीये डॉ मुकुल श्रीवास्तव सर का रहा .. क्यूंकि जब सच्चाई और जमीनी हकीक़त पता चला तो पहली बात ये थी की अगर आपको लिखना आता है तो आप कुछ भी कर  सकते हैं .. अभी तक हम सब बहुत ही बायस्ड थे जो शायद चीजों को हमारे लिए पेचीदा बना रहा था .. दिमाग में कचरा भरा था जिसकी वजह से हम न तो नया सोच पते थे न ही नया एक्सेप्ट कर प् रहे थे जो काफी टकराहट का कारन बन रहा था .. क्यूंकि अबतक हम तस्वीर का दोनों पक्ष नही देखते थे .. पर मुकुल सर की मदद से नाली को चोक सही हो रहा था और कचरा निकलना शुरू हो गया था .. हालाँकि हर कोई इस काम में सफल नही हो प् रहा था .. पर सफाई करने में सब लगे हुए थे ....

(मास कम्युनिकेशन शरुआती दिनों की याद में ...............जुलाई २०१२)

Friday, April 18, 2014

वक्त की आंधी नही बचा आम ....

आज सुबह जब पिता जी से बात हो रही थी तो उन्होंने मौसम की बदतमीजी को कोसते हुए कहा की आंधी की वजह से इसबार आम की बागको बड़ा ही नुक्सान हुआ .. लगभग आधे फल जमीन पर आ गये हैं .. जो अभी काफी छोटे हैं जिनका कुछ नही बन सकता है .. आम की जब बात आती है तो खास पर गुस्सा आती है .. क्यूंकि आम ही ऐसा फल है जिसे हर आदमी आसानी से पाता और खाताहै .. वैसे शहर में भी काफी नुक्सान हुआ जितनी होअर्दिंग्स थी सबके सब चौपट हो चुकी हैं . पर ये सब सुबह के अख़बारों की सुर्खिया थी और मेरे आम को कोई फुटेज ही न मिली .. मलीहाबाद जो आम के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है .. वहां की भी कोई खबर न ली गयी .. खैर , आम आदमी पार्टी की तरह आम भी खबरों जगह कम पायेगा . क्यूंकि बीजेपी और कांग्रेस है न पन्ना भरने के लिए .. कोई टॉफी दे रहा है देश को तो कोई ट्राफी दिलाने के सपने दिखा रहा है .. देश की दोनों पार्टियाँ जो सबसे बढ़ी हैं उन्होंने आजतक कोई ऐसा मॉडल नही पेश किया जो देश की गरीबी और बेरोजगारी का तोड़ हो .. डिबेट चल रही रैली हो रही है दो चार गाँव एक रैली के खर्चे में बदल सकते हैं लेकिन भासन देना ज्यादा जरूरी सिवाय काम करने के .. जनसमस्या समझने एक गली से जब हम गुजरे तो लोग वोट देने की बात पर कुछ कंफ्यूज से दिखे उन्हें वोट देना है लेकिन किसे दे क्यूंकि सारे उम्मीदवार  एक जैसे हैं ... पहले प्रचार करने लोग जाते थे अब वो भी नही जाते है .. गरीब आदमी को काम से फुर्सत नही है क्यूंकि वो नही करेगा तो शाम में खायेगा क्या .. तो वो देश में किसकी लहर है उसी में बहने को तैयार है पर उसे ये पता है लोग वोट लेकर उसे किनारे लगा देंगे .. जो सरकारी सुविधाएँ हैं उनको पाने में भी उन्हें 100 से 200 रूपये तक देने पड़ जाते हैं ... एक खास बात ये भी पता चली की ऐसी सुविधाएँ भी खास के खासों को ही मिलती हैं ... 

Wednesday, April 16, 2014

मैं किसान का बेटा हूँ .......


गेहूं की फसल अपने चरम है, पूरी धरती सोना हो गयी है, बालियाँ की खनक ऐसी है मानो कोई कमसिन सुंदर लड़की की खनकती हंसी हो.... पूरे गावं में ख़ुशी सा माहौल है पंशुओं में भी लहर दौड़ पड़ी है क्यूंकि अभी तक वो किसी एक जगह बंधे रहते थे लेकी अब उन्हें खली खेतों में चरने का मौका मिलेगा साथ ही उनका प्रिय आहार भूसा भी मिलना शुरू हो जायेगा .... ये वही मौसम है जब किसान मस्त होकर अपने काम में लग जाता है ... उसे बहुत सारा काम करना होता है, लेकिन चैत की सुबह और शाम में हवा के मध्धम झोके में आल्हा गेट हुए वो अपने सरे काम निपटाताजाता है ... दूर खेतों से जब वो अपने सर पर गेहूं का बोझ लाकर रखता है और लुगाई उसे निहारते हुए एक हाथ में गुढ़ और एक हाथ में लोटे में नल से निकाला गया ठंडा पानी लिए खड़ी होती है ....जिसे पीकर किसान अपने काम में फिर पूरे मन से लग जाता है ... पढने वाले बच्चे भी गर्मी की छुट्टी के मौके में  अपने पिता के कामो में हाथ बंटाते हैं ...कहते हैं इस मौसम दुधारू पशुओं का दूध बढ़ा ही स्वादिष्ट होता है ... आम आदमी को एक मात्र खाने को मिलने वाला फल आम भी इसी मौसम में तैयार हो रहा होता है .. बागों में चहल पहल बढ़ जाती है .. कोई पेड़ पर चढ़ कर , तो कोई लग्गियों और लबेदों से आम का शिकार करता है .. आम आम पर वार करता है ... ये कहानी हर साल चैत में घटित होती है , पर इसबार इसमें मसाला लगा है वो भी काफी गर्म और चोख ... चुनाव २०१४ की सरगर्मी चारो तरफ राजनीतिक चर्चाएँ तेज हो चली खेतों में ही फैसले हो रहे हैं किसे वोट देना है .. महंगाई , गरीबी , बेरोजगारी और बढ़ते  डीजल के मूल्य मुख्य मुद्दे हैं ... जो पार्टी इन मुद्दों को ध्यान में रखे हुए है या इन्हें कम करने की बात कर रही है.. वो उसी को वोट देने की बात करते हुए अगला बोझा उठा लेते हैं और गाते हुए खलिहान की तरफ कदम बड़ा देते हैं .... 

Monday, April 14, 2014

तेरे साथ जो बिताया पल है ,
खुद को भूला तुमको जिया है,
तुम्हारे लिए लम्हे होंगे वो ,
मैंने तो सदियाँ समझा है ,
बारिश गवाह है ,
तो  धूल और धूप तुम कैसे भूलोगी ,
ठंडक की ठण्ड हवा हमारी यादों को ठंडा नही कर सकती,
क्यूंकि आने वाली हवाएं गर्म हैं ,
जो हमारे रिश्ते में गर्माहट भर देंगी।  

Sunday, April 13, 2014

मैं काफी  दिनों से ये सोच  रहा हूँ की ब्लॉग  पर  कुछ लिखा  जाये, लेकिन संसाधन की अनुपलब्धता हमारी  लेखनी में रुकावट थी।  लवकिं अब संसाधन है तो कोशिश करूँगा कुछ न कुछ लिखता रहूँगा धन्यवाद।