Monday, June 9, 2014

बदलता वक्त
वक्त किसी के लिए न तो रुकता है न ही किसी का इन्तजार करता है. ये सिर्फ वक्त वालों के साथ रहता है. आप चाहे लाख कोशिश करलें इसे आप बदल नही सकते हैं. जो वक्त के साथ कदम ताल नही मिला पाया है उसका वक्त जाना पक्का है. चाहे आप राजनीती में अडवाणी को लें या मोदी को कोई दोनों वक्त की परिभाषा को सार्थक करते हैं. एक समय था जब अडवाणी के प्रशंसक उन्हें अपने खून का तिलक लगा देते थे. लेकिन जब समय बदला तो आज उनसे जूनियर मोदी उनके सामने प्रधानमंत्री का शपथ ले रहे थे. कहने का मतलब वक्त ने अडवाणी को ख़ारिज कर दिया और मोदी के साथ हो चला. यही हाल फ़िल्मी दुनिया का भी अमिताभ बच्चन आज भी उतने ही पॉपुलर हैं जितना की वो सन 80 में हुआ करते थे. उनके साथ का कोई भी अभिनेता आज इस मुकाम पर नही है. ऐसे ही अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी के साथ हुआ है. आज जहाँ सुनील शेट्टी को काम के लाले पड़े हैं वहीं अक्षय कुमार साल भर में मिलाकर 3 से 4 फिल्में देते रहते हैं. इन दोनों में बस इतना फ़र्क है की अक्षय कुमार ने खुद को वक्त के साथ बदल लिया और वही काम सुनील शेट्टी नही कर पाए. खेलों में भी ये बात लागू होती है एक जमाना था जब टीम इंडिया में सौरव गांगुली की टूटी बजती थी. दादा के नाम से मशहूर इस क्रिकेटर ने सही वक्त पर सन्यास न लेकर अपने क्रिकेट जीवन के आखिरी पलों को कड़वा कर दिया. यही हाल द्रविड़, लक्ष्मण और पोंटिंग का भी हुआ. ये रहे कुछ बढे उदाहरण जो काफी हद तक खरा उतरते हैं. लहर और वक्त के साथ चलना ज्यादा आसान रहा है वनस्पति के इसके विपरीत. वैसे परिवर्तन संसार का नियम है जो होता रहता है और हमे हमेशा नई चीजों को समझते हुए अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए. आजकल एक सबसे बढ़िया उदहारण है. वो है मोबाइल फ़ोन जो आज के वक्त में रोजाना अपडेट होती रहती है. कहाँ वो अन्टीना वाला फ़ोन आज कंप्यूटर से भी तेज और  ज्यादा काम कर रहा है. और तो और अब तो ये स्मार्ट भी हो चला है. सूचना क्षेत्र में तो क्रांति लेकर आया है ये फ़ोन फेसबुक , ट्विटर और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया टूल ने तो अभिवक्ति को ऐसा प्लेटफार्म दे रहे हैं जिनसे देश की राजनीति तक प्रभावित हुई है. कालिंग और मेसेजिंग को भी नये आयाम मिले हैं. लोगों ने खुद अपनी बात दुनिया के सामने रखना शुरू किया है जो दुनिया में एक नई शुरुआत है. वो चाहे मिस्र की क्रांति हो या अन्ना का मोमेंट या चाहे  दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल का प्रचार प्रसार या फिर देश का सबसे बड़ा चुनाव और मोदी की जीत में भी सोशल मीडिया का प्रभाव रहा है. लेकिन ऐसा नही है हर कोई सोशल मीडिया पर खुद को सहज नही महसूस कर  पा रहा ये भी एक विशेषता है जो वक्त के साथ नही चल पाया या फिर वो बदलाव के मुताबिक खुद को तैयार नही कर पाया है.

कहने का सीधा मतलब है वक्त के साथ चलने में ही भलाई है. जो आज हमारी ज़िन्दगी में नई चीजें शामिल हुई हैं उनसे हमारा काम और जीवन आसान ही हुआ है. बस हमे चीजों से ताल्माले बनाकर चलना सीखना होगा.

Wednesday, June 4, 2014

बाल श्रम और कानून
होमर फलेक्स के अनुसार, बालकों द्वारा किया जाने वाला कोई भी कार्य जो उनके पूर्ण शारीरिक विकास, न्यूनतम शिक्षा तथा आवश्यक मनोरंजन में बाधक हो, वो बालश्रम कहलाता है। बाल श्रम का अर्थ बच्चों को उत्पादन से संबंधित ऐसे लाभकारी व्यवसाय में लगाना है जिससे उनके स्वास्थ्य को खतरा हो तथा उनके विकास में बाधक हो। ये सिर्फ उद्योगों  में लगे हुए बच्चों पर ही लागू नहीं होता है। ये उन तमाम छोटे-मोटे व्यवसायिक काम जो 18 वर्ष की कम आयु वाले बच्चों के मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और नैतिक विकास में रूकावट डाले वो सब भी बालश्रम कानून के तहत आता है।
बाल श्रम अपने आप में एक सामाजिक कलंक है। ये समस्या सबसे पहले अन्र्तराष्टï्रीय स्तर पर 1924 मेें जेनेवा में उठायी गयी। इसी घोषणा पत्र में बच्चों के अधिकार को मान्यता देते हुए पांच सूत्री कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई। साथ ही साथ बालश्रम को प्रतिबंधित भी कर दिया गया। 1989 में  संयुक्त राष्टï्र के सदस्यों द्वारा बालश्रम को रोकने के लिए और दण्ड के प्रावधान को लेकर हस्ताक्षर किये गये।
भारत में बाल अधिकार
बाल अधिकार अधिनियम 1933, बाल रोजगार अधिनियम 1938, भारतीय कारखाना अधिनियम 1940 ऐसे कुछ प्रावधान बालश्रम को रोकने के लिये थे। जो स्वतंत्रता पूर्व बनाये गये थे और आज भी लागू हैं। स्वतंत्रता के बाद 1952 में पारित औद्योगिक विवाद अधिनियम में भी बाल श्रम निषेध कर दिया गया। संविधान के तहत ये सुनिश्चित किया गया कि 6 से 14 वर्ष तक की आयु वालेे सभी बच्चों को मुफत शिक्षा मिलेगी। ऐसे में किसी भी बच्चे को काम पर लगाना कानूनन जुर्म माना जायेगा। राज्य का यह कर्तव्य निर्धारित किया गया कि पैसे के लालच या कमी कि वजह किसी बच्चे क ो बालश्रम के लिये मजबूर न करे।
भारत में बाल श्रम की स्थिति
कई गैर सरकारी सक्रिय संगठनों के  मुताबिक भारत में साल 2010 तक 6 करोड़ बाल मजदूर हैं। जिसमें 1 करोड़ बंधुआ मजदूर हैं, क्योंकि वो बंधुआ मजदूर के यहां पैदा हुए होते हैं। जिसमें 50 लाख ओद्योगिक कामों में लगे हुए हैं। राष्टï्रीय बाल अधिकार आयोग की वेबसाइट पर मौजूद 2001 के आकड़ों में बाल मजदूरों की संख्या 1.27 करोड़ है। देश में राष्टï्रीय बाल अधिकार आयोग के अलावा दिल्ली, बिहार और 9 राज्यों में ही बाल अधिकार आयोग है। जो पूरी तरह से सक्रिय नहीं हैं।
बाल श्रम के प्रभाव
चाय की हर छोटी दूकान पर गिलास धोने का काम और चाय देने का काम एक छोटू करता है। जिससे वह बहुत सारी चीजों से वंचित रह जाता है। शिक्षा, नैतिकता और समाजिकता जैसी महत्वपूर्ण चीजों से वो वाकिफ नहीं हो पाते हैं। बाल श्रम की वजह से गरीबी बढ़ी है। जो विकास में सबसे बड़ी बाधा है। अल्पायु में मौत या भयानक रोग से बच्चे चपेट में आ जाते हैं। आने वाली पीढ़ी को समस्याएं विरासत में मिलती हैं। देश का भविष्य इससे खराब होता है।                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       

Monday, June 2, 2014

अनुच्छेद-370 लम्हों की खता , सदियों को सजा ॥॥॥॥॥

अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का सबसे विवादित और विशेष अनुच्छेद है, जिसे आर्टिकल 370 भी कहते हैं। इसकी वजह

से राज्य जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों की तुलना में अलग से संवैधानिक छूट प्राप्त है। आजादी के बाद से लेकर अब तक ये

धारा भारतीय राजनीति में हड़कम्प मचाती रही है। पूर्व प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू के विशेष हस्तक्षेप से ये धारा

तैयार की गयी थी। भारतीय संविधान में ये धारा अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबन्ध सम्बन्धी भाग 21 में है। इस

धारा का सबसे ज्यादा विरोध बीजेपी और अन्य राष्टï्रवादी दल करते रहें हैं। उनकी हमेशा से ये मांग रही है कि कश्मीर से

अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से खत्म किया जाये और पूरे देश में एक समान नागरिकता का संविधान लागू किया जाए। बीजेपी

ने तो इसे अपने हर चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया है।
1947 में अनुच्छेद 370 का खाका शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था जिनको पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू और कश्मीर के राजा हरि

सिंह ने कश्मीर का प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। अब्दुल्ला चाहते थे कि धारा 370 स्थायी रूप से लागू हो। लेकिन नेहरू ने

इसे नकार दिया था। 1965 तक कश्मीर में राज्यपाल को सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था।

हालांकि उस समय नेहरू को छोड़कर लगभग सारे लोग इस अनुच्छेद के खिलाफ थे। भीमराव अम्बेडकर भी इससे नाखुश

थे। ये सिर्फ 10 सालों तक लागू किया गया था। जिसे बाद में एक खास वर्ग और वोट बैंक की राजनीति को साधने के चक्कर

में सरकारें बढ़ाती गयीं।

क्या विशेष है अनुच्छेद 370ï में ?

धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून

बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित कानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का

अनुमोदन चाहिये। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण

राष्टï्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। 1976 का शहरी भूमि कानून भी वहां लागू नहीं

होता है। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का   अधि

कार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते। धारा 360 जिसके तहत वित्तीय

आपातकाल लगाने का प्रावधान है, लेकिन ऐसा कश्मीर में नहीं होता।

विशेष अधिकार -

जम्मू कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है। उनका राष्टï्रध्वज अलग होता है। विधानसभा का कार्यकाल 6

वर्षों का होता है। वहां भारत के राष्टï्रध्वज या राष्टï्रीय प्रतीक का अपमान करने पर कोई अपराध नहीं माना जाता है। भारत के

सुप्रीम कोर्ट का आदेश राज्य में मान्य नहीं है। ससंद सिर्फ सीमित क्षेत्रों में ही कानून बना सकती है। जम्मू कश्मीर की महिला

अपने राज्य से बाहर शादी करती है तो उसे कश्मीर की नागरिकता गवांनी पड़ती है। लेकिन अगर वहीं वो किसी पाकिस्तान क

े नागरिक से शादी करती है तो उस पाकिस्तानी को वहां की नागरिकता मिल जायेगी। आरटीआई, आरटीई और कैग वहां

लागू नहीं है। एक मायने में भारत का कोई भी कानून वहां नहीं लागू होता है।  कश्मीर में महिलाओं पर शरियत लागू है। वहां

पंचायती राज नहीं है। चपरासी को 2500 रूपये ही मिलते हैं , हिंदू-सिख अल्पसख्यकों को 16 प्रतिशत आरक्षण भी नहीं प्राप्त

है। कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानी को भारत की नागरिकता भी मिल जाती है जबकि अन्य भारतीय वहां जमीन तक नहीं ले

सकता है।

Sunday, June 1, 2014


सारा आम तो कैटरीना ले गयी ।।।।।।


जून शुरू होने को है और इसबार एक भी दशेहरी आम अब तक खाने को नहीं मिला है। फलों का राजा आम जो हर आम और खास की हथेली तक पहुंचता है। लेकिन अभी इसका सभी को इन्तजार है। पता नहीं कहां है वो मलिहाबादी जो अभी तक हमारे शहर नहीं पहुंचा है। बड़ी उम्मीद है इस बार भी हर बार की तरह कि जब तुम आओगे तो गर्मी घटाओगे। अभी तो खासा हरे हो खट्टे भी हो, लेकिन जब तुम्हारा रंग हल्का पीला और लाल होने लगता है और तुम मीठे हो जाते हो। तो तुमको देखकर मुंह में सिर्फ पानी आता है, डाल की तोड़ी हुई दशहरी जब बाल्टी भर पानी में डालकर हम आम आदमी खाना शुरू करते हैं तो उसका मजा ही कुछ और है। वो दिन आज भी बहुत याद आते हैं जब बैरिस्टर साहब के साढ़े तीन सौ बीघे वाले बाग में हम आम चुराने जाया करते थे। हमारे श्रावस्ती में ये सबसे बड़ी बाग है। वैसे बाग तो हमारे यहां भी हैं , लेकिन देशी आम की और हमें उस वक्त चस्का दशहरी का। वैसे आम तो आजकल हर जगह आपको बोतलों में मिल जायेगा।





स्लाइस, माजा, फ्रुटी और तमाम ऐसे पेय पदार्थ जो ये दावा करते हैं कि हम आपको हर मौसम में आम की कमी नहीं खलने देंगे। लेकिन क्या ऐसा सम्भव है , मेरे हिसाब से बिल्कुल नहीं वो स्वाद कहां बोतल वाले आम में। शाहरूख से लेकर सनी देओल तक बोतल वाले आम का प्रचार करने में लगे हैं और मेरे लिखने की वजह बनीं कैटरीना जो आम का आमसूत्र भी बता रहीं हैं। वाक्या ये हुआ मैंगो शेक मांगने पर जब सामने से आम के न होने का जवाब आता है, तो मेरा क्यों ? शायद मेरे हिसाब से लाजिमी भी था। तो जवाब मिलता है कि सारा आम कैटरीना ले गयी। शायद उसका जवाब उम्दा था। आमसूत्र यूं ही नहीं कैटरीना ने पेश कर दिया है। वैसे छोडि़ए आमसूत्र वाली कैटरीना को और याद करिए जरा अमेरिका वाली कैटरीना को जिसकी वजह से भारी तबाही मची थी। दो दिन पहले वाली आंधी ने आम और आम जन को काफी नुकसान पहुंचाया दोनों आम जमीन पर आ गये। तो कैटरीना कोई भी हो लेकर वो आम को ही जाती है। चाहे वो पेड़ वाला आम हो या फिर आम अवाम हो। कैटरीना की अदा ही खतरनाक है। तो होशियार रहें कैटरीना से।



आम की फोटो इंटरनेट से ली गयी हैं।