बदलता वक्त
वक्त किसी के लिए न तो रुकता है न ही किसी का इन्तजार करता है. ये
सिर्फ वक्त वालों के साथ रहता है. आप चाहे लाख कोशिश करलें इसे आप बदल नही सकते
हैं. जो वक्त के साथ कदम ताल नही मिला पाया है उसका वक्त जाना पक्का है. चाहे आप
राजनीती में अडवाणी को लें या मोदी को कोई दोनों वक्त की परिभाषा को सार्थक करते
हैं. एक समय था जब अडवाणी के प्रशंसक उन्हें अपने खून का तिलक लगा देते थे. लेकिन
जब समय बदला तो आज उनसे जूनियर मोदी उनके सामने प्रधानमंत्री का शपथ ले रहे थे.
कहने का मतलब वक्त ने अडवाणी को ख़ारिज कर दिया और मोदी के साथ हो चला. यही हाल
फ़िल्मी दुनिया का भी अमिताभ बच्चन आज भी उतने ही पॉपुलर हैं जितना की वो सन 80 में
हुआ करते थे. उनके साथ का कोई भी अभिनेता आज इस मुकाम पर नही है. ऐसे ही अक्षय
कुमार और सुनील शेट्टी के साथ हुआ है. आज जहाँ सुनील शेट्टी को काम के लाले पड़े
हैं वहीं अक्षय कुमार साल भर में मिलाकर 3 से 4 फिल्में देते रहते हैं. इन दोनों
में बस इतना फ़र्क है की अक्षय कुमार ने खुद को वक्त के साथ बदल लिया और वही काम
सुनील शेट्टी नही कर पाए. खेलों में भी ये बात लागू होती है एक जमाना था जब टीम
इंडिया में सौरव गांगुली की टूटी बजती थी. दादा के नाम से मशहूर इस क्रिकेटर ने
सही वक्त पर सन्यास न लेकर अपने क्रिकेट जीवन के आखिरी पलों को कड़वा कर दिया. यही
हाल द्रविड़, लक्ष्मण और पोंटिंग का भी हुआ. ये रहे कुछ बढे उदाहरण जो काफी हद तक
खरा उतरते हैं. लहर और वक्त के साथ चलना ज्यादा आसान रहा है वनस्पति के इसके
विपरीत. वैसे परिवर्तन संसार का नियम है जो होता रहता है और हमे हमेशा नई चीजों को
समझते हुए अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए. आजकल एक सबसे बढ़िया उदहारण है. वो
है मोबाइल फ़ोन जो आज के वक्त में रोजाना अपडेट होती रहती है. कहाँ वो अन्टीना वाला
फ़ोन आज कंप्यूटर से भी तेज और ज्यादा काम
कर रहा है. और तो और अब तो ये स्मार्ट भी हो चला है. सूचना क्षेत्र में तो क्रांति
लेकर आया है ये फ़ोन फेसबुक , ट्विटर और व्हाट्सएप्प जैसे सोशल मीडिया टूल ने तो
अभिवक्ति को ऐसा प्लेटफार्म दे रहे हैं जिनसे देश की राजनीति तक प्रभावित हुई है.
कालिंग और मेसेजिंग को भी नये आयाम मिले हैं. लोगों ने खुद अपनी बात दुनिया के
सामने रखना शुरू किया है जो दुनिया में एक नई शुरुआत है. वो चाहे मिस्र की क्रांति
हो या अन्ना का मोमेंट या चाहे दिल्ली के
चुनाव में केजरीवाल का प्रचार प्रसार या फिर देश का सबसे बड़ा चुनाव और मोदी की जीत
में भी सोशल मीडिया का प्रभाव रहा है. लेकिन ऐसा नही है हर कोई सोशल मीडिया पर खुद
को सहज नही महसूस कर पा रहा ये भी एक
विशेषता है जो वक्त के साथ नही चल पाया या फिर वो बदलाव के मुताबिक खुद को तैयार
नही कर पाया है.
कहने का सीधा मतलब है वक्त के साथ चलने में ही भलाई है. जो आज हमारी
ज़िन्दगी में नई चीजें शामिल हुई हैं उनसे हमारा काम और जीवन आसान ही हुआ है. बस
हमे चीजों से ताल्माले बनाकर चलना सीखना होगा.