Saturday, November 28, 2015

कठिन शब्दों में आता था मैं-असहिष्णुता

हिंदी मध्यम में जिसने भी पढ़ाई की होगी उसे करीब कक्षा तीन से कठिन शब्द सिखाये गये होंगे. हम इमला लिखते वक्त इन्हीं शब्दों को लिखने में असमर्थ हुआ करते थे. ऐसे में बीते कुछ दिनों से एक शब्द है असहिष्णुता जो आज पल भर में बखेड़ा खड़ा कर देता है. वास्तव में ये तब जितना कठिन था, आज लोग इसका इस्तेमाल उतनी ही आसानी  से कर देते हैं. भले ही बचपन में हिंदी के पीरियड में इमला लिखते वक्त इस शब्द से लोग दूर ही भागते फिरते रहे हों. लेकिन आज जैसे सबलोग इस शब्द को अपने पजामे के नाड़े में बांधे घूम रहे हैं.
खासकर वो लोग जो आज ज्यादा जाने-पहचाने और पढ़े-लिखे होशियार माने जाते हैं. मीडिया में जो एंकर इस शब्द से कनी काटता फिर रहा था. आज कैमरे के सामने पहुँचने से पहले इसके बोलने में कहीं उच्चारण न बिगड़ जाये उसके लिए घर में.रास्ते में, अपनी बीबी/पति/सोकॉल्ड दोस्त अथवा प्रेमी और सीसे के सामने इसका खूब रियाज करता है. लिखने वाला पत्रकार या कॉपी राइटर अपने दिमाग तब पूरा जोर लगा देता है, जब उसे असहिष्णुता लिखना होता है. साथ ही बहुत से कॉपी एडिटर इसको लिखने के लिए गूगल का शरण लेते हैं. अब बताइए कितना माथापच्ची एक अदने से शब्द ने बड़ा दिया है.
खैर अब आते हैं, इस शब्द से घबराहट महसूस करने वाले लोगों पर जो खामखाँ देश ही छोड़ देना चाहते हैं. किसी की बीबी कहती है तो किसी का खुद ब्लड प्रेशर हाई-लो हो रहा है. ऐसे में अब ये शब्द अब मजाक की तरफ बढ़ रहा है. आखिर ये शब्द आया कहां से और किस भाषा से लिया गया है. तो ये संस्कृत भाषा का शब्द जो आज लोग सामान्य तौर पर बिलकुल ही नहीं उपयोग में लाते हैं. लेकिन हिंदी में ये शब्द संस्कृत से सीधे उठा लिया गया है. तो मजबूरी में लोग इसके उपयोग को मजबूर हैं. साथ ही अगर मशहूर होना है, तो बोलना तो पड़ेगा ही.
सबसे पहले इस शब्द का उपयोग किया पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु कि नातिन ने जिन्हें इमरजेंसी और सिख दंगों से पहले साहित्य अकादमी का पुरुष्कार मिला था. साथ ही ज्यादातर युवा पीढी उन्हें तब जान पायी कि वह कौन हैं, जब उन्होंने अपना सम्मान इस शब्द के आड़ में वापस करने की बात सार्वजानिक की. फिर क्या था एक नया ही ट्विटर ट्रेंड चल गया #अवार्डवापसी. कुछ लोग तो जल्दबाज़ी में इस अभियान का हिस्सा बन गये बाद में उन्हें पछतावा भी हुआ. इन लोगों ने देश की अन्य बुनियादी समस्याओं से सरकार का ध्यान हटाकर अपने किताबों और अपने कारनामों की तरफ कर लिया. उधर किसानों की आत्महत्या में इजाफा हो रहा था. इधर को चमकाने के लिए सम्मान लौटाए जा रहे थे. उधर गांवों से लोग शहरों कि तरफ पलायन कर रहे थे. तो कुछ लोग अपनी तकलीफ और एसी में घुटन की वजह से अपने राष्ट्रीय पुरुस्कारों को वापस फेंके जा रहे थे. बाजारवाद से जूझ रहे देश का पहला कोर्ट माने जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खासकर टीवी इसे आत्महत्या से ज्यादा जरूरी मुद्दा मानते हुए, ब्रेकिंग न्यूज़ बनाये जा रहा था. प्राइम टाइम से सूखा गायब था अवार्ड वापसी का झंडा बुलंद किया जा रहा था. प्रधानसेवक ट्रेवलसिकनेस से परेशान चोली दामन लेकर यात्रा पर निकल गये. अवार्ड वापस करो या तुम सूखा से मर मिट जाओ.
लेकिन अब इस शब्द का मर्म देखो जिसने बोला उसकी लाइफ झिंगालाला. फिल्म आने वाली है बोल दो, कूड़ा हो रहे हो बोल दो और कोई मुद्दा नहीं है राहुल बाबा तुम भी बोल दो. फिर भी मैं असहिष्णु हूँ थोड़ा तो कठिन हूँ, बोल ले गये तो बिना वजह के वजह बन जाओगे. शाम में टीवी पर चर्चा बन जाओगे. फिर भी कठिन हूँ, जुबान एक बार झेल नहीं पाती है. लेकिन जब निकलता हूँ, तो सबके कान भी झल्ला उठते हैं. कुछ लोग तो आपको पाकिस्तान का टिकट भी भिजवा देंगे अगर पता उन्हें दे दो तो..........   

Monday, November 9, 2015

बिहार की हार बिहारी की जीत : बिजली दें तब न लाइक करेंगे स्टेटसवा को (बिहार चुनाव परिणाम )

सब कोई बिहार पर बोल रहा है, हमसे भी नहीं रहा जा रहा है. तो हम भी बोल रहा है, चारा घोटाले वाले लालू और सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने कांग्रेस को जोड़कर महागंठबंधन बनाकर बिहार से प्रधान सेवक को खदेड़ दिया है. अब बात आती है ई सब कैसे संभव हुआ की साल भर पहले जिस मोदी ने बिहार की जनता का दिल जीतकर लालू और नीतीश को केंद्र की राजनीति से दूर कर दिया था. वह ऐसे बैरंग होकर विधान सभा चुनाव से लौटे. मैंने अभी कुछ दिन पहले अनुमान लगाया था कि बिहार में एनडीए आराम से अपने काम भर का सीट जीत कर खुद को सेट कर लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. असल में बिहार बड़े जिद्दी टाइप के लोग हैं. जो मोहब्बत के लिए पहाड़ काट डालते हैं. लेकिन जब नफरत का रथ निकलता है, तो उसे भी बिहारी लालू ही रोंकते हैं. तो बिहार में देश के कई अनोखे लोग और घटनाएँ देखी या सुनी जाती हैं. जो वास्तव में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बेहद ही अनूठी हैं. हम बिहारी नहीं और न ही हमने वोट किया है. लेकिन मैं बिहार के कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो इस देश की राजनीतिक दशा और दिशा समय-समय पर बदलते हैं आये हैं. आप जब पिछला चुनाव जीते थे लोकसभा वाला तो क्या बोले थे. वह कला धन एक झटके से देश कि जनता के खाते में 15-15 लाख जनधन वाले खाते में डलवा देंगे. लेकिन बाद में जब जीत गये तो आप खांखने लगे. आप वही बात कहने लगे जो कांग्रेस कहती आयी है. मैं कहता हूं कि चलो माना कि कानूनी अड़चने आ रही हैं. तो फिर आप मुख्य विपक्षी दल थे तो आप को ये नहीं पता था कि जो बोल रहे हैं वह कर पाएंगे कि मौके पर वोट ही लेना था. ये आपका फ्राड नम्बर एक है. दूसरा महंगाई कांग्रेस बड़ा रही थी. किसका दाम बढ़ता था प्याज और टमाटर का अपने उसमें घटाया क्या साथ दाल का डबल डोज देकर हमें सब्जी चावल खाने पर मजबूर कर दिया. तीसरा और सबसे अहम बात आपने किसानों के लिए क्या किया? आत्महत्या का पूरे देश में दौर चल रहा है और आपको विदेशी दौरों से फुर्सत ही नहीं है. मुझे तो ये लगता है जितनी बार आप ओबामा से मिले हैं उतनी बार शायद ही आप देश के किसानों से मिल पायें हों. बाकी देश के गांव आज भी एक अदद बुनियादी सुबिधाओं जैसे स्कूल, पानी, शौचालय, रोड और जनउपयोगी मूलभूत सुविधाओं से दूर है. रही बात आपके डिजिटल भारत के सपने की तो पहले लाइट नेटवर्क देंगे तभी न हम आपके  फेसबुक स्टेटस को लाइक कर पाएंगे.
अंतिम और आपके हार की वजह उलूल-जुलूल बोलने वाले सांसद जो आपके लहर और नाम से अपना सीट जीत लिए उनके बोल ऐसे रहे जो आपको प्रधानमंत्री नहीं प्रधान मोदी बना डाले. वह तो गाय गोरु की बात करने लगे. जैसे गाय दूध नहीं वोट देती हो, और खुद उनका मुंह गोबर जैसे फेंक रहा हो. एक बात और आप अवार्ड वापसी वालों की तरफ ध्यान नहीं दिए वह काबिले तारीफ है. क्योंकि उन्होंने देश का खाया और देश की मिटटी पर मल त्याग दिए. उन्होंने कोई जमीन पर उतरकर काम नहीं किया है. वह सब पैसा चाहते हैं आपसे जो आप नहीं देंगे क्योंकि आप बनियाँ हैं.

तो अंत में मैं आपसे इतना कहना चाहूँगा कि आप आज भी भारत के प्रधानमंत्री बनने के सबसे योग्य दावेदार हैं. रही बात आप इस चुनाव से लोड न लें चाहें तो अमित शाह को योगा ज्वाइन करवा दें. काम करें आप अभी कुछ ऐसा नहीं किये हैं जिससे समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग आपके प्रधान सेवक वाली सेवा का अहसास करे. बाकी अपने खच्चर घोड़ों पर लगाम रखें. टाइट करें कि अपने क्षेत्र के विकास की तस्वीर अपने फेसबुक अकाउंट अपलोड करें. लाइक मिले तो ठीक नहीं तो कमेंट के माध्यम से इसकी वजह जानने की कोशिश करें और बोले न सच में दुर्गन्ध आती साक्षी महराज के मुंह से.