Monday, December 14, 2015

मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं

यूँ तो आज का लखनऊ अब समय के साथ काफी आधुनिक हो गया है. लेकिन अभी इस शहर का तहजीब और अदब का नुमाइशबाज माना जाता है. अपनी आधुनिकता में अभी यहाँ की बोली में पहले आप का चलन है. गोमती नदी के किनारे बसा ये शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी है. राजनीतिक रूप में लखनऊ हमेशा देश की सरकार के बनने बिगड़ने में अपना हस्तक्षेप रखता आया है. लेकिन लखनऊ अपने समृद्ध ऐतिहासिक धरोहरों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. इसे अवध के नाम से भी जाना जाता है. अगर बनारस की सुबह सबसे खूबसूरत होती है, तो लखनऊ की शाम. 18वीं शताब्दी में यहाँ शिया नवाबों ने अपने शासन के दौरान इसे बहुत खूबसूरत बनाया था. कला, खाना और रहन-सहन में ठाठी मिजाज के इन नवाबों ने लखनऊ बहुत शानदार गुम्बद और मीनारों वाले निर्माण कराए थे. जिनके में नाख्काशी और चित्रकारी का अनूठा संगम था. जो आज भी लखनऊ को नवाबों का शहर बनाती है. इस शहर को 18वीं सदी में स्वर्ण नगर और उर्दू में इसे सिराज-ए-हिन्द कहा जाता था. नवाबों के बनाये शानदार गुम्बद, मीनार और मकबरे उस ज़माने की कारीगरी को बयां करते हैं.....
आइये हम आपको उन्हीं में से कुछ चुनिन्दा जगहों के बारे में बता रहें हैं, जहाँ हमें अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान जरूर जाना चाहिए----

1.
  बड़ा इमामबाड़ा
वैसे हर कोई लखनऊ की तहजीब का कायल है. लेकिन इन तहजीबों का कोई जीता जागता उदहारण है, तो वह यहां की मुगल समय की इमारतें जो खुद में किसी तहजीब से कम नहीं हैं. इसलिए अगर आप लखनऊ की विरासत को गौर से देखना और समझना चाहते हैं. तो आप पुराने लखनऊ में स्थित बड़ा इमामबाड़ा यानी कि भूलभुलैया का एक बार भ्रमण जरुर करें. ये मुगलिया इमारत अद्भुत नक्खाशी और मुगल कला का शानदार परिचय देता है. ये न सिर्फ लखनऊ की शान बढ़ाता है, बल्कि लखनऊ के इतिहास और संस्कृति का अनूठा नगीना है.
ऐसा माना जाता है कि मुग़ल काल में भीषण सूखा पड़ने के कारण मजदूरों के लिए काम मुहैया कराने के लिए नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में कराया था. जिससे लोगों को रोजगार और अपने जीवनयापन के लिए मुग़ल ख़जाने से खाने और रहने का इंतजाम भी हो सके. ये उस जामने में गोमती नदी के तट पर बनाया गया था जिसके पीछे से होकर नदी बहती थी. हालाँकि अब ये नदी यहाँ नाले में तब्दील हो गयी है. यहाँ आकर मन में सबसे पहला सवाल यही आता है कि कैसे इतनी पुरानी इमारत आज भी इतनी जीवंत हो सकती हैं. इसका भूलभुलैया नाम इसलिए है क्यूंकि इसमें पहली बार बिना गाइड आप वापस निकल नहीं पाएंगे. क्यूंकि इसके दरबों में आपस में बड़ी समानता है. इसके परिसर में एक मस्जिद भी है, जहाँ गैरमुस्लिम नहीं जा सकता है.
2.रूमी दरवाजा
  जब आप बड़ा इमामबाड़ा से थोड़ा आगे बढ़ेंगे, तो एक भव्य दरवाजा दिखाई देगा. जो मेन रोड पर ही निर्मित है इसकी ऊंचाई 60 फीट है. इसे देखकर आपको भारत के दो प्रसिद्ध जगहों की याद आ जाएगी. पहला दिल्ली का इंडिया गेट दूसरा मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया है. यहाँ ये कहना भले ही अतिश्योक्ति होगी लेकिन मुझे तो एकबारगी ये गेटवे ऑफ़ लखनऊ लगा. रूमी दरवाजा को देखकर मन रुक जाता है. गजब की नक्खासी ऐसे मानो किसी ने एक-एक कोर बड़ी ही तबियत से बनाया हो. इस दरवाजे से इधर पुराने लखनऊ में आवागमन भी होता है. इसका निर्माण भी बड़ा इमामबाडा के साथ ही कराया गया था. इसे तुर्किश गेट भी कहते हैं.
3.घंटाघर (क्लॉक टावर)
यूँ तो भारत में बहुत सारे घंटाघर हैं, लेकिन लखनऊ का घंटाघर अपने आप में बहुत ही खास है. रूमी दरवाजे से कुछ ही कदम जैसे आपन आगे बढ़ेंगे. आपको दायें हाथ पर 221 फीट ऊँचा घंटाघर दिखाई देगा. जो भारत का सबसे ऊँचा घंटाघर है. इसका निर्माण नवाब नसीरुद्दीन ने सन 1887 में अंग्रेजी वास्तुकला में अवध प्रान्त यानी लखनऊ के पहले लेफ्टिनेंट गर्वनर जार्ज कूपर की अगुवाई करने के लिए कराया था. हालाँकि इतिहास को संजोने में हम भारतीय हमेशा ढुलमुल रहे हैं, तो अभी घंटाघर के आसपास रेनोवेशन का काम चल रहा है. लेकिन हम इसे देखकर प्राचीन काल की कारीगरी को सलाम कर सकते हैं. इसी के पास 19वीं सदी में पिक्चर गैलरी का निर्माण भी हुआ था. जिसमें लखनऊ के सभी नवाबों की तस्वीरें और उनके इतिहास के बारे में हमें अच्छी जानकारी मिल सकती है. इस पिक्चर गैलरी के माध्यम से हम लखनऊ के अतीत में झांक सकते हैं.    
4.छोटा इमामबाड़ा
घंटाघर से थोड़ी दूर और बढ़ेंगे तो हमें एक और शानदार मुगलिया निशानी देखने को मिलेगी. इसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहते हैं. जिसका निर्माण मोहम्मद अली शाह ने सन 1837 के आसपास कराया था. किले के दरवाजे जैसा गेट इस खूबसूरत इमारत का आकर्षण और बड़ा देती है. इसका गुम्बद बहुत ही चमकदार है. इसमें लोगों और यहाँ के गाइड के मुताबिक मोहम्मद अली शाह और उनकी माँ को यहीं दफनाया गया था. इसके ठीक विपरीत दिशा में एक अधूरा घंटाघर भी बना हुआ है. जो सतखंडा नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नवाब यहाँ से अपनी बेगम के साथ ईद के दिन चाँद को निहारने के लिए इसे बनवा रहे थे. सन 1840 में मोहम्मद अली शाह के मृत्यु हो गयी थी. जिसकी वजह से इसके निर्माण को रोक दिया गया था. तब ये मात्र चार मंजिल ही बन पाया था. जिसे अब सरकार पूरा करवा रही है.
5. जामी मस्जिद
जब हम छोटे इमामबाड़े के अंदर होते हैं तो हमें एक शानदार गुम्बद उसके ठीक पीछे नजर आती है. इतनी भव्य कि मैं उसके बारे नहीं जनता था. लेकिन उसकी खूबसूरती ने मुझे ऐसे अपनी ओर खींचा मैं खुद को रोक नहीं पाया. यकीन मानिये अगर आपकी भी नजर इन गुम्बदों पर पड़ गयी तो आप भी खुद को रोक नहीं पाएंगे. इतनी नफासत इस मस्जिद में जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. रूमी दरवाजे वाली ही रोड से हम थोड़ी दूर आगे बढ़ेंगे. जहाँ से हम हरदोई रोड पर यूनिटी कॉलेज की तरफ जायेंगे. उसी के बगल से एक रास्ता जामी मस्जिद की तरफ गया है. अदभुत और लखनऊ की सबसे विशाल मस्जिद. इस मस्जिद का निर्माण का नवाब शाह मोहम्मद अली ने शुरू करवाया था. लेकिन उनके देहांत के बाद उनकी बेगम ने इस मस्जिद को पूरा करवाया. मस्जिद अंदर की चित्रकारी आज भी दुनिया की सबसे अनमोल चित्रकारियों में आती है. जामी मस्जिद के अंदर गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है.