Monday, December 14, 2015

मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं

यूँ तो आज का लखनऊ अब समय के साथ काफी आधुनिक हो गया है. लेकिन अभी इस शहर का तहजीब और अदब का नुमाइशबाज माना जाता है. अपनी आधुनिकता में अभी यहाँ की बोली में पहले आप का चलन है. गोमती नदी के किनारे बसा ये शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी है. राजनीतिक रूप में लखनऊ हमेशा देश की सरकार के बनने बिगड़ने में अपना हस्तक्षेप रखता आया है. लेकिन लखनऊ अपने समृद्ध ऐतिहासिक धरोहरों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. इसे अवध के नाम से भी जाना जाता है. अगर बनारस की सुबह सबसे खूबसूरत होती है, तो लखनऊ की शाम. 18वीं शताब्दी में यहाँ शिया नवाबों ने अपने शासन के दौरान इसे बहुत खूबसूरत बनाया था. कला, खाना और रहन-सहन में ठाठी मिजाज के इन नवाबों ने लखनऊ बहुत शानदार गुम्बद और मीनारों वाले निर्माण कराए थे. जिनके में नाख्काशी और चित्रकारी का अनूठा संगम था. जो आज भी लखनऊ को नवाबों का शहर बनाती है. इस शहर को 18वीं सदी में स्वर्ण नगर और उर्दू में इसे सिराज-ए-हिन्द कहा जाता था. नवाबों के बनाये शानदार गुम्बद, मीनार और मकबरे उस ज़माने की कारीगरी को बयां करते हैं.....
आइये हम आपको उन्हीं में से कुछ चुनिन्दा जगहों के बारे में बता रहें हैं, जहाँ हमें अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान जरूर जाना चाहिए----

1.
  बड़ा इमामबाड़ा
वैसे हर कोई लखनऊ की तहजीब का कायल है. लेकिन इन तहजीबों का कोई जीता जागता उदहारण है, तो वह यहां की मुगल समय की इमारतें जो खुद में किसी तहजीब से कम नहीं हैं. इसलिए अगर आप लखनऊ की विरासत को गौर से देखना और समझना चाहते हैं. तो आप पुराने लखनऊ में स्थित बड़ा इमामबाड़ा यानी कि भूलभुलैया का एक बार भ्रमण जरुर करें. ये मुगलिया इमारत अद्भुत नक्खाशी और मुगल कला का शानदार परिचय देता है. ये न सिर्फ लखनऊ की शान बढ़ाता है, बल्कि लखनऊ के इतिहास और संस्कृति का अनूठा नगीना है.
ऐसा माना जाता है कि मुग़ल काल में भीषण सूखा पड़ने के कारण मजदूरों के लिए काम मुहैया कराने के लिए नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में कराया था. जिससे लोगों को रोजगार और अपने जीवनयापन के लिए मुग़ल ख़जाने से खाने और रहने का इंतजाम भी हो सके. ये उस जामने में गोमती नदी के तट पर बनाया गया था जिसके पीछे से होकर नदी बहती थी. हालाँकि अब ये नदी यहाँ नाले में तब्दील हो गयी है. यहाँ आकर मन में सबसे पहला सवाल यही आता है कि कैसे इतनी पुरानी इमारत आज भी इतनी जीवंत हो सकती हैं. इसका भूलभुलैया नाम इसलिए है क्यूंकि इसमें पहली बार बिना गाइड आप वापस निकल नहीं पाएंगे. क्यूंकि इसके दरबों में आपस में बड़ी समानता है. इसके परिसर में एक मस्जिद भी है, जहाँ गैरमुस्लिम नहीं जा सकता है.
2.रूमी दरवाजा
  जब आप बड़ा इमामबाड़ा से थोड़ा आगे बढ़ेंगे, तो एक भव्य दरवाजा दिखाई देगा. जो मेन रोड पर ही निर्मित है इसकी ऊंचाई 60 फीट है. इसे देखकर आपको भारत के दो प्रसिद्ध जगहों की याद आ जाएगी. पहला दिल्ली का इंडिया गेट दूसरा मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया है. यहाँ ये कहना भले ही अतिश्योक्ति होगी लेकिन मुझे तो एकबारगी ये गेटवे ऑफ़ लखनऊ लगा. रूमी दरवाजा को देखकर मन रुक जाता है. गजब की नक्खासी ऐसे मानो किसी ने एक-एक कोर बड़ी ही तबियत से बनाया हो. इस दरवाजे से इधर पुराने लखनऊ में आवागमन भी होता है. इसका निर्माण भी बड़ा इमामबाडा के साथ ही कराया गया था. इसे तुर्किश गेट भी कहते हैं.
3.घंटाघर (क्लॉक टावर)
यूँ तो भारत में बहुत सारे घंटाघर हैं, लेकिन लखनऊ का घंटाघर अपने आप में बहुत ही खास है. रूमी दरवाजे से कुछ ही कदम जैसे आपन आगे बढ़ेंगे. आपको दायें हाथ पर 221 फीट ऊँचा घंटाघर दिखाई देगा. जो भारत का सबसे ऊँचा घंटाघर है. इसका निर्माण नवाब नसीरुद्दीन ने सन 1887 में अंग्रेजी वास्तुकला में अवध प्रान्त यानी लखनऊ के पहले लेफ्टिनेंट गर्वनर जार्ज कूपर की अगुवाई करने के लिए कराया था. हालाँकि इतिहास को संजोने में हम भारतीय हमेशा ढुलमुल रहे हैं, तो अभी घंटाघर के आसपास रेनोवेशन का काम चल रहा है. लेकिन हम इसे देखकर प्राचीन काल की कारीगरी को सलाम कर सकते हैं. इसी के पास 19वीं सदी में पिक्चर गैलरी का निर्माण भी हुआ था. जिसमें लखनऊ के सभी नवाबों की तस्वीरें और उनके इतिहास के बारे में हमें अच्छी जानकारी मिल सकती है. इस पिक्चर गैलरी के माध्यम से हम लखनऊ के अतीत में झांक सकते हैं.    
4.छोटा इमामबाड़ा
घंटाघर से थोड़ी दूर और बढ़ेंगे तो हमें एक और शानदार मुगलिया निशानी देखने को मिलेगी. इसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहते हैं. जिसका निर्माण मोहम्मद अली शाह ने सन 1837 के आसपास कराया था. किले के दरवाजे जैसा गेट इस खूबसूरत इमारत का आकर्षण और बड़ा देती है. इसका गुम्बद बहुत ही चमकदार है. इसमें लोगों और यहाँ के गाइड के मुताबिक मोहम्मद अली शाह और उनकी माँ को यहीं दफनाया गया था. इसके ठीक विपरीत दिशा में एक अधूरा घंटाघर भी बना हुआ है. जो सतखंडा नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नवाब यहाँ से अपनी बेगम के साथ ईद के दिन चाँद को निहारने के लिए इसे बनवा रहे थे. सन 1840 में मोहम्मद अली शाह के मृत्यु हो गयी थी. जिसकी वजह से इसके निर्माण को रोक दिया गया था. तब ये मात्र चार मंजिल ही बन पाया था. जिसे अब सरकार पूरा करवा रही है.
5. जामी मस्जिद
जब हम छोटे इमामबाड़े के अंदर होते हैं तो हमें एक शानदार गुम्बद उसके ठीक पीछे नजर आती है. इतनी भव्य कि मैं उसके बारे नहीं जनता था. लेकिन उसकी खूबसूरती ने मुझे ऐसे अपनी ओर खींचा मैं खुद को रोक नहीं पाया. यकीन मानिये अगर आपकी भी नजर इन गुम्बदों पर पड़ गयी तो आप भी खुद को रोक नहीं पाएंगे. इतनी नफासत इस मस्जिद में जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. रूमी दरवाजे वाली ही रोड से हम थोड़ी दूर आगे बढ़ेंगे. जहाँ से हम हरदोई रोड पर यूनिटी कॉलेज की तरफ जायेंगे. उसी के बगल से एक रास्ता जामी मस्जिद की तरफ गया है. अदभुत और लखनऊ की सबसे विशाल मस्जिद. इस मस्जिद का निर्माण का नवाब शाह मोहम्मद अली ने शुरू करवाया था. लेकिन उनके देहांत के बाद उनकी बेगम ने इस मस्जिद को पूरा करवाया. मस्जिद अंदर की चित्रकारी आज भी दुनिया की सबसे अनमोल चित्रकारियों में आती है. जामी मस्जिद के अंदर गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है.    




Saturday, November 28, 2015

कठिन शब्दों में आता था मैं-असहिष्णुता

हिंदी मध्यम में जिसने भी पढ़ाई की होगी उसे करीब कक्षा तीन से कठिन शब्द सिखाये गये होंगे. हम इमला लिखते वक्त इन्हीं शब्दों को लिखने में असमर्थ हुआ करते थे. ऐसे में बीते कुछ दिनों से एक शब्द है असहिष्णुता जो आज पल भर में बखेड़ा खड़ा कर देता है. वास्तव में ये तब जितना कठिन था, आज लोग इसका इस्तेमाल उतनी ही आसानी  से कर देते हैं. भले ही बचपन में हिंदी के पीरियड में इमला लिखते वक्त इस शब्द से लोग दूर ही भागते फिरते रहे हों. लेकिन आज जैसे सबलोग इस शब्द को अपने पजामे के नाड़े में बांधे घूम रहे हैं.
खासकर वो लोग जो आज ज्यादा जाने-पहचाने और पढ़े-लिखे होशियार माने जाते हैं. मीडिया में जो एंकर इस शब्द से कनी काटता फिर रहा था. आज कैमरे के सामने पहुँचने से पहले इसके बोलने में कहीं उच्चारण न बिगड़ जाये उसके लिए घर में.रास्ते में, अपनी बीबी/पति/सोकॉल्ड दोस्त अथवा प्रेमी और सीसे के सामने इसका खूब रियाज करता है. लिखने वाला पत्रकार या कॉपी राइटर अपने दिमाग तब पूरा जोर लगा देता है, जब उसे असहिष्णुता लिखना होता है. साथ ही बहुत से कॉपी एडिटर इसको लिखने के लिए गूगल का शरण लेते हैं. अब बताइए कितना माथापच्ची एक अदने से शब्द ने बड़ा दिया है.
खैर अब आते हैं, इस शब्द से घबराहट महसूस करने वाले लोगों पर जो खामखाँ देश ही छोड़ देना चाहते हैं. किसी की बीबी कहती है तो किसी का खुद ब्लड प्रेशर हाई-लो हो रहा है. ऐसे में अब ये शब्द अब मजाक की तरफ बढ़ रहा है. आखिर ये शब्द आया कहां से और किस भाषा से लिया गया है. तो ये संस्कृत भाषा का शब्द जो आज लोग सामान्य तौर पर बिलकुल ही नहीं उपयोग में लाते हैं. लेकिन हिंदी में ये शब्द संस्कृत से सीधे उठा लिया गया है. तो मजबूरी में लोग इसके उपयोग को मजबूर हैं. साथ ही अगर मशहूर होना है, तो बोलना तो पड़ेगा ही.
सबसे पहले इस शब्द का उपयोग किया पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु कि नातिन ने जिन्हें इमरजेंसी और सिख दंगों से पहले साहित्य अकादमी का पुरुष्कार मिला था. साथ ही ज्यादातर युवा पीढी उन्हें तब जान पायी कि वह कौन हैं, जब उन्होंने अपना सम्मान इस शब्द के आड़ में वापस करने की बात सार्वजानिक की. फिर क्या था एक नया ही ट्विटर ट्रेंड चल गया #अवार्डवापसी. कुछ लोग तो जल्दबाज़ी में इस अभियान का हिस्सा बन गये बाद में उन्हें पछतावा भी हुआ. इन लोगों ने देश की अन्य बुनियादी समस्याओं से सरकार का ध्यान हटाकर अपने किताबों और अपने कारनामों की तरफ कर लिया. उधर किसानों की आत्महत्या में इजाफा हो रहा था. इधर को चमकाने के लिए सम्मान लौटाए जा रहे थे. उधर गांवों से लोग शहरों कि तरफ पलायन कर रहे थे. तो कुछ लोग अपनी तकलीफ और एसी में घुटन की वजह से अपने राष्ट्रीय पुरुस्कारों को वापस फेंके जा रहे थे. बाजारवाद से जूझ रहे देश का पहला कोर्ट माने जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खासकर टीवी इसे आत्महत्या से ज्यादा जरूरी मुद्दा मानते हुए, ब्रेकिंग न्यूज़ बनाये जा रहा था. प्राइम टाइम से सूखा गायब था अवार्ड वापसी का झंडा बुलंद किया जा रहा था. प्रधानसेवक ट्रेवलसिकनेस से परेशान चोली दामन लेकर यात्रा पर निकल गये. अवार्ड वापस करो या तुम सूखा से मर मिट जाओ.
लेकिन अब इस शब्द का मर्म देखो जिसने बोला उसकी लाइफ झिंगालाला. फिल्म आने वाली है बोल दो, कूड़ा हो रहे हो बोल दो और कोई मुद्दा नहीं है राहुल बाबा तुम भी बोल दो. फिर भी मैं असहिष्णु हूँ थोड़ा तो कठिन हूँ, बोल ले गये तो बिना वजह के वजह बन जाओगे. शाम में टीवी पर चर्चा बन जाओगे. फिर भी कठिन हूँ, जुबान एक बार झेल नहीं पाती है. लेकिन जब निकलता हूँ, तो सबके कान भी झल्ला उठते हैं. कुछ लोग तो आपको पाकिस्तान का टिकट भी भिजवा देंगे अगर पता उन्हें दे दो तो..........   

Monday, November 9, 2015

बिहार की हार बिहारी की जीत : बिजली दें तब न लाइक करेंगे स्टेटसवा को (बिहार चुनाव परिणाम )

सब कोई बिहार पर बोल रहा है, हमसे भी नहीं रहा जा रहा है. तो हम भी बोल रहा है, चारा घोटाले वाले लालू और सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने कांग्रेस को जोड़कर महागंठबंधन बनाकर बिहार से प्रधान सेवक को खदेड़ दिया है. अब बात आती है ई सब कैसे संभव हुआ की साल भर पहले जिस मोदी ने बिहार की जनता का दिल जीतकर लालू और नीतीश को केंद्र की राजनीति से दूर कर दिया था. वह ऐसे बैरंग होकर विधान सभा चुनाव से लौटे. मैंने अभी कुछ दिन पहले अनुमान लगाया था कि बिहार में एनडीए आराम से अपने काम भर का सीट जीत कर खुद को सेट कर लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. असल में बिहार बड़े जिद्दी टाइप के लोग हैं. जो मोहब्बत के लिए पहाड़ काट डालते हैं. लेकिन जब नफरत का रथ निकलता है, तो उसे भी बिहारी लालू ही रोंकते हैं. तो बिहार में देश के कई अनोखे लोग और घटनाएँ देखी या सुनी जाती हैं. जो वास्तव में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बेहद ही अनूठी हैं. हम बिहारी नहीं और न ही हमने वोट किया है. लेकिन मैं बिहार के कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो इस देश की राजनीतिक दशा और दिशा समय-समय पर बदलते हैं आये हैं. आप जब पिछला चुनाव जीते थे लोकसभा वाला तो क्या बोले थे. वह कला धन एक झटके से देश कि जनता के खाते में 15-15 लाख जनधन वाले खाते में डलवा देंगे. लेकिन बाद में जब जीत गये तो आप खांखने लगे. आप वही बात कहने लगे जो कांग्रेस कहती आयी है. मैं कहता हूं कि चलो माना कि कानूनी अड़चने आ रही हैं. तो फिर आप मुख्य विपक्षी दल थे तो आप को ये नहीं पता था कि जो बोल रहे हैं वह कर पाएंगे कि मौके पर वोट ही लेना था. ये आपका फ्राड नम्बर एक है. दूसरा महंगाई कांग्रेस बड़ा रही थी. किसका दाम बढ़ता था प्याज और टमाटर का अपने उसमें घटाया क्या साथ दाल का डबल डोज देकर हमें सब्जी चावल खाने पर मजबूर कर दिया. तीसरा और सबसे अहम बात आपने किसानों के लिए क्या किया? आत्महत्या का पूरे देश में दौर चल रहा है और आपको विदेशी दौरों से फुर्सत ही नहीं है. मुझे तो ये लगता है जितनी बार आप ओबामा से मिले हैं उतनी बार शायद ही आप देश के किसानों से मिल पायें हों. बाकी देश के गांव आज भी एक अदद बुनियादी सुबिधाओं जैसे स्कूल, पानी, शौचालय, रोड और जनउपयोगी मूलभूत सुविधाओं से दूर है. रही बात आपके डिजिटल भारत के सपने की तो पहले लाइट नेटवर्क देंगे तभी न हम आपके  फेसबुक स्टेटस को लाइक कर पाएंगे.
अंतिम और आपके हार की वजह उलूल-जुलूल बोलने वाले सांसद जो आपके लहर और नाम से अपना सीट जीत लिए उनके बोल ऐसे रहे जो आपको प्रधानमंत्री नहीं प्रधान मोदी बना डाले. वह तो गाय गोरु की बात करने लगे. जैसे गाय दूध नहीं वोट देती हो, और खुद उनका मुंह गोबर जैसे फेंक रहा हो. एक बात और आप अवार्ड वापसी वालों की तरफ ध्यान नहीं दिए वह काबिले तारीफ है. क्योंकि उन्होंने देश का खाया और देश की मिटटी पर मल त्याग दिए. उन्होंने कोई जमीन पर उतरकर काम नहीं किया है. वह सब पैसा चाहते हैं आपसे जो आप नहीं देंगे क्योंकि आप बनियाँ हैं.

तो अंत में मैं आपसे इतना कहना चाहूँगा कि आप आज भी भारत के प्रधानमंत्री बनने के सबसे योग्य दावेदार हैं. रही बात आप इस चुनाव से लोड न लें चाहें तो अमित शाह को योगा ज्वाइन करवा दें. काम करें आप अभी कुछ ऐसा नहीं किये हैं जिससे समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग आपके प्रधान सेवक वाली सेवा का अहसास करे. बाकी अपने खच्चर घोड़ों पर लगाम रखें. टाइट करें कि अपने क्षेत्र के विकास की तस्वीर अपने फेसबुक अकाउंट अपलोड करें. लाइक मिले तो ठीक नहीं तो कमेंट के माध्यम से इसकी वजह जानने की कोशिश करें और बोले न सच में दुर्गन्ध आती साक्षी महराज के मुंह से. 

Saturday, October 17, 2015

इंडियन सुपर लीग और भारतीय फुटबॉल का भविष्य

क्रिकेट के दीवाने इस देश में किसी अन्य खेल को उतना तवज्जो नही मिलती चाहे वो दुनिया का सबसे चहेता खेल फुटबॉल ही क्यूँ न हो. लेकिन जब से फुटबॉल के लीग संस्करण की शुरुआत इंडियन सुपरलीग के तौर पर हुई है तब से मानो सोये हुए भारतीय फुटबॉल प्रेमी जग गये हों. ये तो रही बात फुटबॉल के प्रेमियों की इस खेल के प्रति झुकाव की. लेकिन अब जो बात हम आपको बताने जा रहे हैं वह है आईएसएल से भारतीय फुटबॉल के जीर्नौद्धार की.
जैसा की भारतीय फुटबॉल टीम दुनिया में उतनी जानी मानी नही है या ये कहें कि हम इस खेल में नौसिखिया हैं. लेकिन एशिया महाद्वीप में अन्य टीमों के मुकाबले हमारी पोजीशन थोड़ी ठीक थक ही है. आईएसएल की शुरुआत पिछले साल आईपीएल के तर्ज पर शुरू हुई थी. बॉलीवुड और क्रिकेट बड़े खिलाड़ियों और कॉर्पोरेट घरानों ने इसमें अपनी-अपनी टीमें खरीदी हैं.
सचिन, गांगुली, धोनी क्रिकेट से और अभिषेक बच्चन, ऋतिक रोशन जैसे सितारों ने इसमें टीम खरीदकर इसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है.
आईएसएल में बहुत सारे विदेशी खिलाड़ी भी भाग लेते हैं जिसकी वजह से भारतीय फुटबॉल का नाम पूरी दुनिया में हुआ है. विदेशी खिलाडियों के शामिल होने से भारत के उभरते हुए युवा खिलाड़ियों को भविष्य में अच्छा खिलाड़ी बनने में मदद मिलेगी. साथ ही बहुत सारे कोचिंग स्टाफ भी विदेशी हैं जो बड़े-बड़े क्लबों में कोच की भूमिका निभा रहे हैं. उनके आईएसएल में आने से देश नए खिलाडियों विश्वस्तर की जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी.
विदेशी खिलाडियों में क्लू उचे, हेल्डर पोस्टीगा,  गुस्तावो डॉस सैंटॉस, इलानो और रोबर्टो कार्लोस जैसे बेहतरीन खिलाड़ी अब इस लीग से जुड़े हुए हैं. इनके साथ में भारतीय खिलाडियों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. जो शायद आईएसएल के बगैर सम्भव न हो पाता.
कोचिंग और अन्य स्टाफ में जीको जो, डेविड प्लाट, सीजर फ्लेसिय्स और पीटर टेलर जैसे कोचिंग स्टाफ की मौजूदगी से इसका सीधा फायदा भारतीय खिलाड़ियों को होगा.
पहले सीजन में मिली अपार सफलता से आईएसएल अपने दुसरे सीजन में भी काफी रोमांचक मुकाबलों के होने से इसका व्यवसायीकरण काफी बड़ गया है. जो इसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद जगाता है. इससे भारतीय फुटबॉल का भविष्य और चमकेगा और ये किसी सपने के हकीकत होने से कम नही होगा. जो हर घर में फुटबॉल पहुंचा सकता है.




जिया हो बिहार के लाला...... बिहार चुनाव बहुतों का सबकुछ लगा है दांव पर

जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है कि बिहार के चुनाव में कुछ न कुछ अप्रत्याशित होने वाला है, जो इस बिहार का भविष्य बदलकर रख देगा. इस चुनाव बिहार के ही नही देश के कई बड़े नेताओं का सबकुछ दांव पर लगा है. जिनमे खास लोगों में स्वयं भारत के प्रधानमन्त्री मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश, लालू यादव, जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान जो केंद्र में मंत्री भी हैं. ऐसे में बिहार की तरफ पूरा देश मुहं उठाये ताक रहा है.  
बिहार एक ऐसा राज्य है, जो देश की राजनैतिक में हमेशा अपना अलग ही स्थान बनाये रखता है. वास्तव में ये राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा पिछड़ेपन का शिकार रहा है. यहाँ इतनी गरीबी है कि यहाँ के लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करके जीवनयापन करने को मजबूर हैं. इस वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव का मौसम चल रहा है और बिहार ने हमेशा से ही देश की राजनीति में अपने अहमियत को साबित किया है. पूरे देश की नजर इस वक्त बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा उसका इन्तजार कर रहे हैं. प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है. बिहार राज्य की अपनी खासियत है कि वहां की जनता किस तरह जनाधार दे दे ये कोई हवा में नही कह सकता है. गरीबी और अशिक्षा होने के नाते बिहार के लोग जातिवाद से काफी घिरे हुए हैं और इस मुद्दे को यहाँ की राजनीति में काफी निर्णायक पक्ष माना जाता है. यहाँ की सबसे पिछड़ी जाती महादलित है और सबसे अगड़ी जाति में भूमिहार आते हैं. नीतीश कुमार और लालू यादव ने बिहार में बीजेपी को रोकने के लिए सबसे बड़ा और अकल्पनीय महागठबंधन करके सियासत के सारी चाल ही पलट दी है. एक ज़माने में बीजेपी के साथ मिलकर लालू यादव की सत्ता को जंगलराज कहकर उखाड़ फेंका था. लेकिन सुशासन बाबू नीतीश की लोकसभा चुनावों में बीजेपी के नरेंद्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार बनाने की वजह से बीजेपी से अपना अलगाव कर लिया. लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद बीजेपी ने न सिर्फ केंद्र में अपनी सरकार बनाई बल्कि नरेंद्र मोदी देश के आज प्रधानमन्त्री भी बने. लेकिन अब जब बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू ने बीजेपी को रोकने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है. तो ये बात काफी वास्तविक हो जाती है कि बिहार के मेहनती लोग इसबार कुछ नया ही रुझान देश के समक्ष पेश करेंगे. जिसके आगे हो सकता है सारे एग्जिट पोल धरे के धरे रह जाएँ.
अब बात आती है कि बिहार चुनाव ये दोनों बड़े गठ्बन्धन किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं, ये बात काफी काबिले गौर है कि बिहार देश का अति पिछड़ा राज्यों में से एक है. और वास्तविकता में यहाँ ये देखकर हैरानी होती है कि जो बिहार के चुनाव नेताओं का भाषण सुनने को मिल रहा है. वह पूरी तरह तुच्छ राजनीति के तहत एक दुसरे के ऊपर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप और जातिगत आंकड़ों को साधने तक सीमित हो गयी है. एक तरफ लालू-नितीश गरीबों के मसीहा बनना चाह रहे हैं. तो दूसरी तरफ बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे का सहारा लेकर विकास की गोली देने के जुगत में लगी हुई है. देश पिछले कुछ समय से अंतर्कलह और नयेपन में ढलने में लगा हुआ है. जिसकी वजह बहुत सारी विसंगतियाँ उभरकर सामने आ रही हैं. बिहार में वोट मांगने के इस तरीके को जायज अथवा नाजायज ठहराने के लिए एक बार फिर फैसला बिहार की जनता के हाथ में है. जो हर बार की तरह इसबार भी चौंकाने वाला आना चाहिए.



Monday, August 17, 2015

एक समय ऐसा लग रहा था कि गाल टेस्ट में भारत  सीधी  जीत दर्ज करेगा लेकिन खूबसूरत क्रिकेट ने अपनी अनिश्चितता दिखाई और पांसा पलटा श्रीलंका ने भारत को पटखनी दे दी। इस हार के बाद एक दौर शुरू होता है, नवनियुक्त कप्तान विराट को कोसने का तीन  पारियों की कप्तानी लाजवाब और बहुत अच्छी लेकिन आखिरी पारी में जब हेराथ की गेंदों ने हमारे बल्लेबाज़ों को परास्त कर दिया।  तब पूरा रुख बदल गया  पूर्व क्रिकेटरों का और   क्रिकेट के जानकारों का जिसकी कप्तानी पूर्व महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर करते हैं. हमे सामने वाली टीम का कोई ख्याल ही नही है कि  ये टीम श्रीलंका है जो अपने चमत्कारिक खेल के लिए जानी जाती है।  पहली इनिंग उनकी खराब गयी थी और हमारी बनी हुई आखिरी इनिंग खराब गुजरी बाकी तो क्रिकेट है ही अनिश्चिताओं का खेल।  अब विराट नए हैं तो उनपर इतना दबाव देना ठीक नही आगे अभी हमे खेलना ही है न की वापस आना है।  रोहित और हरभजन को निशाना न बनाकर उन्हें अगले मैच भी मौका देना चाहिए।  मुझे  यकीन है ये लोग अच्छा करेंगे।  लेकिन  कल की खबर ने थोड़ा चौंकाया। रॉजर बिन्नी साहब ने अपने बच्चे का नाड़ा कसकर श्रीलंका भेजने का प्रोग्राम सेट कर दिया। हम लोग साफ़ सुथरा चयन चाहते हैं वो हैं उन्हें अपने लड़के की पड़ी है. विराट से मेरी यही गुजारिश है कि यही टीम मैदान में ले जाएँ जो हार का कारण बनता है वही जीत का बने। 

Thursday, March 5, 2015

बीच, बिकनी और बियर : होली के साल भर
गोवा­- अचानक एक ऐसे प्लान ने जन्म लिया था पिछले साल जो आज भी जीवन के सबसे यादगार पलों में पहले स्थान पर है. गोवा जाने का प्लान जो पूरी तरह से अपने आप में एक घटना की तरह था. न घर वालों को खबर न यार दोस्तों को २०१४ की होली यादगार होली बन गयी. गोवा एक ऐसी जगह जहाँ सिर्फ जिंदगियां मौज मस्ती करती ही मिलेंगी. एअरपोर्ट से बाहर निकलते ही कोई सपनों का शहर दिलों-दिमाग में आने वाला सजीव सामने खड़ा था. होटल बघा मरीना जो बघा बीच के पास एक फाइव स्टार होटल है जहाँ  पहुँचने में लगभग एक घंटे का समय लगा. लखनऊ वाया दिल्ली वाया बंगलौर फिर गोवा लगभग ४ घंटे का हवाई सफर लेकिन शरीर तो थकता ही है सफर चाहे जैसा भी क्यूँ न हो. हमने कमरे पर पहले आराम और कुछ खाने पीने को तरजीह दिया. बालकनी से स्विमिंग पूल में नहा रहे लोंग जिसमे विदेशी मूल के ज्यादा लोग दिख रहे थे. हमने भी नहाने का सोच रखा था पर पूल में नही अरब सागर में. हमारे होटल के से जो नज़ारे मिल रहे थे. उसमे थोड़ा बहुत बाज़ार भी दिख रहा था. लगभग दो घंटे बाद हम लोगों ने बघा बीच की तरफ रुक्सत किया बीच करीब में ही था और रास्ता मार्किट से होकर जाता है तो दुकानों की रौनके भी साफ़ नजर आती थी. ज्यादातर दुकाने कपड़ों की थी. सबसे ज्यादा बिकने वाला कपड़ा मेरे हिसाब से बिकनी था. बिकनी के खरीदार ज्यादा संख्या में विदेशी टूरिस्ट थे. बॉलीवुड में बिकनी के नाम पर फिल्मों के दर्शक बढ़ जाते हैं. लेकिन यहाँ तो बिकनी बेब्स की भरमार थी. उसके बाद बियर गोवा क्लबों का शहर है और बियर उसकी जान है . बिना बियर रंग में भंग के बराबर है. यहाँ आम भाषा अंग्रेजी है हिंदी हम आपस में ही बोल सकते हैं या हमे बहुत ही कम लोग हिंदी भाषी मिलेंगे. बियर लोग ऐसे पी रहे थे जैसे पानी वो चाहे सागर के पास चाहे रास्ता चलते हुए. हम यूपी वालों के लिए ये अलग दुनिया जो न तो किसी हद में है और न ही यहाँ कोई बवाल वाली बातें. लोग रोमांस में हैं या फिर आनंद में डूबे हैं. शहर की हर गली परफ्यूम से नहाई हुई लग रही थी. अदभुत खुशबू. बार तो हर नुक्कड़ पर मौजूद हैं बस डांसर को लुभाने के लिए एक लड़की और एक लड़के को लगा रखा गया था. लोग मस्ती में थे पूरा शहर मस्त मौला था किसी से किसी को कोई मतलब नही था. सबकी अपनी दुनिया थी. हम बीच पहुँच गये थे पहली बार मैं अपनी नंगी आँख से किसी सागर के उठती लहरों को देख रहा जो अनवरत बहाव को अपनी गोद में लिए हुए था. कुछ क्षणों के लिए मैं एक टक उन्ही लहरों को निहारता रहा. शानदार आसमान जो रुई के टुकड़ों जैसे बादल से अपनी सुन्दरता से सागर की लहरों को उर्जावान कर रहा था. सागर की लहरें हमारी तरफ बड़ रही थीं. उनके बहाव को देखकर ऐसा लग रहा था की जल्द ही ये हमे छू लेंगी. दिन ढलने को था हम सनसेट के नज़ारे को अपनी आँखों में समेट रहे थे. कुछ बार में लोग हुडदंग भी कर रहे हैं . धरती का ऐसा कोना जहाँ किसी की कोई दखलंदाजी है ही नही. अब बारी हमारी थी कि इस रंग में हम लोग भी रंग जाएँ. चश्मा, हाफ बरमूडा और कैप ये पहनावा आपको गोवा घुमने वाला दिखाता है. हमने ये सब पहन लिया और निकल पड़े गोवा के बीच और बार के शबाब का आनंद लेने. हम लोगों ने किराये पर स्कूटी ली जो टीवीएस कम्पनी की थी. हालाँकि यहाँ किराये पर एक से बढकर एक बेहतरीन बाइक्स उपलब्ध थीं. वैसे तो हमारे देश क्रिकेट के फैन लगभग हर घर में मिल जायेंगे. लेकिन गोवा में फुटबॉल का खुमार ज्यादा है. यहाँ पर आपको हर वो चीज़ मिल सकती है अगर आपके पास पैसा है तो . गोवा में कहावत है कि यहाँ बियर से सस्ती लड़कियां मिलती हैं. मैंने इस सच्चाई के बारे में जानने की कोशिश की. लोडो एक एस्कॉर्ट्स चलाता है जो एक बार के बाहर खड़ा हुआ है. ये बार बागा और calnugate के पास पड़ता है. मेरे पूछने पर उसने बताया की एक घंटे का २०० रूपये और १००० में रात भर. विदेशी  लड़की अगर राशियन है तो 2000 पर रात के लिए उपलब्ध थी. ये फैसिलिटी होटल के कमरे तक भी उपलब्ध थी. कुछ ब्यूटी पार्लर भी ऐसे धंधे में लगे हुए हैं. हमने एक थाई मसाज़ सेंटर जाकर वहां की सुविधा जानी तो इस सर्विस की बात को सबसे बाद में उन लोगों ने कबूला. वाकई अपने आप में हैरान कर देने वाली बात थी. वहां के एक लोकल निवासी अन्थोनी ने बताया ऐसे काम हर विदेशी नही करते हैं. इसमें वो लोग लिप्त हैं जो गरीब है मतलब गरीब विदेशी और उनके लिए ये कोई बड़ी बात नही है. अन्थोनी ने बताया ये लोग इसको एक प्रोफेशनल तरीके से अंजाम देते हैं. साथ ही साथ इसमें भारतीय मूल के लोग भी जुड़े हैं. गोवा का हर निवासी ये मानता है की लोग गोवा सिर्फ एन्जॉय करने आते हैं. जिसमे सेक्स भी एक मेनू है. बागा बीच से आगे बढ़ने पर हमे कई ऐसी बीच भी मिले जिनका नाम हमे याद नही है लेकिन वहां पैदल हमे पैदल ही जाना पड़ा था. जिसकी वजह से आज भी हमे याद आते हैं वो बीच. इनमे से एक बीच का नाम न्यूड बीच है जहाँ लोग नग्न अवस्था में सागर की उन्मादी लहरों में ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए थे. जिनमे जॉन एक किरदार था जो अपनी प्रेमिका के छोड़ देने से परेशान हैं. जॉन एक अमीर परिवार से हैं जो अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से हैं. उन्हें उसके जाने का गम है. इसलिए वो अपना मन बहलाने भारत भ्रमण पर हैं. न्यूड बीच पर वो योग कर रहे जो वो 15 दिन तक करेंगे. जॉन की बातों मुझे प्रेम पर विचार करने पर मजबूर किया. फिर मैंने सागर से जानना चाहा क्यों लोगों का तेरी तरह विशाल नही होता. शायद सागर ने जवाब दिया की लोगों में मेरे जैसा बहाव नही होता.
अगले दिन हमने सागर की लहरों में बोट के सहारे सागर विहार किया. जो अपने आप में रोमांचक था. शनिवार शाम जो हर हफ्ते गोवा में धूम धडाका और पार्टी कल्चर अपने परवान पर होता है. पूरा शहर महक उठता है जगह जगह डीजे और सैम्पन उत्सव का माहौल.
यहीं जब हम बीच के किनारे होते हैं. यहीं सहसा जबान से निकल पड़ता है- बिकनी गर्ल्स ऑन दी बीच विथ बियर . समुन्द्र में रौशनी की अदभुत चमक जो इंद्रधनुष कभी कदार बारिश के बाद दिख जाता है गोवा में वो हर हफ्ते देख सकते हैं. (नोट: यादें हैं धुंधली भी पड़ सकती हैं.)