मैं और वो शेर ......
पठारी क्षेत्र, नदी जो नेपाल से भारतीय सीमा में प्रवेश करती है, घना
जंगल और उसका राजा शेर भी और अन्य छोटे जानवर जंगली जो आज भी सुहेलवा रेंजरी में
पाए जाते हैं. पिताजी की पोस्टिंग वही थी वो वनाधिकारी थे. माता जी की मौत के बाद
हम दोनों भाई-बहन अब पिताजी के साथ ही रहते थे. मेरी 10 और मेरी बहन जो मुझसे 3
साल छोटी थी. पिताजी रोज सुबह ड्यूटी पर चले जाते थे और हम दोनों भाई-बहन रसोइया
भोलाराम और सुरक्षा के लिए चौकीदार श्याम सिंह के साथ पूरा दिन घर पर रहते थे.
भोला राम रोजाना पानी भरने झरने के पास वाले कुएं पर जाया करते थे. मैं ऊबता था और
भोला राम के साथ चलने की जिद करता लेकिन भोला राम हमे साथ इसलिए नही ले जाते की
कैसे वो एक हाथ में बाल्टी पकड़ेंगे और कैसे मुझे गोद लेंगे. साथ ही साथ पिताजी का
आदेश भी नही था. श्याम सिंह भी कभी-कभी पानी ले आया करते थे. उस दिन श्याम सिंह
पिताजी के पास काम से गये हुए थे, घर पर हम भाई-बहन और भोला राम थे. भोला राम पानी
लेने जाने वाले थे तो मैंने उनसे कहा की आज मुझे अपने साथ ले चलो पिताजी को पता
नही चलेगा. भोलाराम ने बाल्टी और घर पर बहन अकेली पड़ जाएगी का हवाला देकर मुझे साथ
नही ले गये. मैं मन मारकर के दरवाजे पर बैठ गया. भोला राम पानी भर कर देर तक जब
वापस नही लौटे तो हमे चिंता होने लगी. हम दोनों काफी डर रहे थे, आखिर कुछ देर बाद
जब श्याम सिंह घर वापस आये तो हमारी पूरी बात सुनने के वो कुएं की तरफ दौड़े मैं
उनके पीछे निकल पड़ा. कुँए के पास जब हम पहुंचे तो हमने देखा की भोला राम और शेर
दोनों कुएं में पड़े हैं. शेर मर चूका था पर भोला राम जिंदा थे. काफी मशक्कत के बाद
श्याम सिंह ने भोलाराम को बाहर निकाला. भोला राम ने इस लड़ाई में अपने एक हाथ का
पंजा लगभग गवां दिया था. पूछने पर भोला राम बोले की प्यासा शेर अचानक उनके सामने आ
खड़ा हुआ. मुझे देखकर शायद वो अपनी प्यास भूलकर भूखा हो गया और मेरी ओर तेजी से
बड़ा. अपनी ओर तेजी से उसे आते देख मैं डर तो रहा ही था लेकिन मेरे पास सिर्फ
बाल्टी थी, जो मैंने उसके मुहं पर तेजी से दे मारा घायल शेर ने मेरे ऊपर जबर्दस्त
वार किया. फिर मैंने एक हाथ से उसकी गर्दन पकड़ कर अपने साथ सीधे कुएं में कूद गया.
जहाँ उसके मुंह को मैंने पानी के अंदर तबतक डुबोये रखा जबतक वो मर नही गया, इसी
लड़ाई में मैंने अपना ये हाथ खो दिया. साल भर बाद जब भोला राम का हाथ ठीक हो गया जो
अब पहले जैसा नही था. लेकिन मैं उन हाथों को आज जब भी छूता तो मुझे ये अनुभूति
होती है कि ये वही हाथ हैं जो किसी शेर के मुहं जा घुसे थे.