Wednesday, August 27, 2014

मैं और वो शेर ......
पठारी क्षेत्र, नदी जो नेपाल से भारतीय सीमा में प्रवेश करती है, घना जंगल और उसका राजा शेर भी और अन्य छोटे जानवर जंगली जो आज भी सुहेलवा रेंजरी में पाए जाते हैं. पिताजी की पोस्टिंग वही थी वो वनाधिकारी थे. माता जी की मौत के बाद हम दोनों भाई-बहन अब पिताजी के साथ ही रहते थे. मेरी 10 और मेरी बहन जो मुझसे 3 साल छोटी थी. पिताजी रोज सुबह ड्यूटी पर चले जाते थे और हम दोनों भाई-बहन रसोइया भोलाराम और सुरक्षा के लिए चौकीदार श्याम सिंह के साथ पूरा दिन घर पर रहते थे. भोला राम रोजाना पानी भरने झरने के पास वाले कुएं पर जाया करते थे. मैं ऊबता था और भोला राम के साथ चलने की जिद करता लेकिन भोला राम हमे साथ इसलिए नही ले जाते की कैसे वो एक हाथ में बाल्टी पकड़ेंगे और कैसे मुझे गोद लेंगे. साथ ही साथ पिताजी का आदेश भी नही था. श्याम सिंह भी कभी-कभी पानी ले आया करते थे. उस दिन श्याम सिंह पिताजी के पास काम से गये हुए थे, घर पर हम भाई-बहन और भोला राम थे. भोला राम पानी लेने जाने वाले थे तो मैंने उनसे कहा की आज मुझे अपने साथ ले चलो पिताजी को पता नही चलेगा. भोलाराम ने बाल्टी और घर पर बहन अकेली पड़ जाएगी का हवाला देकर मुझे साथ नही ले गये. मैं मन मारकर के दरवाजे पर बैठ गया. भोला राम पानी भर कर देर तक जब वापस नही लौटे तो हमे चिंता होने लगी. हम दोनों काफी डर रहे थे, आखिर कुछ देर बाद जब श्याम सिंह घर वापस आये तो हमारी पूरी बात सुनने के वो कुएं की तरफ दौड़े मैं उनके पीछे निकल पड़ा. कुँए के पास जब हम पहुंचे तो हमने देखा की भोला राम और शेर दोनों कुएं में पड़े हैं. शेर मर चूका था पर भोला राम जिंदा थे. काफी मशक्कत के बाद श्याम सिंह ने भोलाराम को बाहर निकाला. भोला राम ने इस लड़ाई में अपने एक हाथ का पंजा लगभग गवां दिया था. पूछने पर भोला राम बोले की प्यासा शेर अचानक उनके सामने आ खड़ा हुआ. मुझे देखकर शायद वो अपनी प्यास भूलकर भूखा हो गया और मेरी ओर तेजी से बड़ा. अपनी ओर तेजी से उसे आते देख मैं डर तो रहा ही था लेकिन मेरे पास सिर्फ बाल्टी थी, जो मैंने उसके मुहं पर तेजी से दे मारा घायल शेर ने मेरे ऊपर जबर्दस्त वार किया. फिर मैंने एक हाथ से उसकी गर्दन पकड़ कर अपने साथ सीधे कुएं में कूद गया. जहाँ उसके मुंह को मैंने पानी के अंदर तबतक डुबोये रखा जबतक वो मर नही गया, इसी लड़ाई में मैंने अपना ये हाथ खो दिया. साल भर बाद जब भोला राम का हाथ ठीक हो गया जो अब पहले जैसा नही था. लेकिन मैं उन हाथों को आज जब भी छूता तो मुझे ये अनुभूति होती है कि ये वही हाथ हैं जो किसी शेर के मुहं जा घुसे थे.

Monday, August 18, 2014

सोशल मीडिया और हमारे रिश्ते...

एक जमाना था जब हमारे या तो स्कूली दोस्त होते थे या मोहल्ले वाले दोस्त होते थे. उनकी संख्या लगभग 4 से 5 होती थी. स्कूल वाले दोस्त हमारे साथ तब होते थे जब हम क्लास में साथ में पढ़ते थे या फिर इंटरवल में खेलते थे. मोहल्ले वाले दोस्त जो होते थे उनके साथ तो तितलियाँ पकड़ना लुकाछिपी खेलना और गर्मी की छुट्टियों में साथ में आम खाना और दिन भर धमा चौकड़ी में हम लगे रहते थे. ऐसे में कभी उनके घर का तो कभी हमारे घर का सीसा भी टूट जाया करता था. अब क्या है अब भाई सोशल मीडिया का जमाना है. फोटो खींचा फीलिंग, टैगिंग और कैप्शन दिया और कर दिया स्टेटस अपडेट और जाहिर कर दी दोस्ती. लेकिन क्या ये दोस्ती दिखाने का सही तरीका है. शायद सबकुछ ठीक है पर वो बात कहाँ नैसेर्गिगता और दिल का जुड़ाव शायद ही नजर आता है. हिन्दुस्तान की एक खबर के मुताबिक सोशल मीडिया के रिश्ते महज एक दिखावा है लोग सिर्फ दिखावा करते हैं. जो लोग अपने दोस्तों के तस्वीरों को अपनी प्रोफाइल पर शेयर करते हैं, उसमे भी प्राकृतिकता नही होती है. शोध के अनुसार टैग करना, लाइक करना और कमेंट करना ये बनावटी ज्यादा और सच कम होता है. लोग दिल से इसे एक्सेप्ट नही कर पाते हैं पर जब उन्हें कोई टैग कर देता है और बेस्ट बडी लिख देता है तो जैसे जबरदस्ती उनसे लाइक या कमेंट मांग रहा हो. ये बात दोस्ती के साथ साथ प्यार करने वाले कपल भी करते हैं. यहाँ तक लोग अपने गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड की तस्वीरे भी दिखावे की खातिर पोस्ट करते जिससे उनके गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड को ये यकीन रहे की वो उन्हें बेहद प्यार करते हैं. जहाँ तक मुझे लगता है तो ये शोध एक हद तक ये बात सही साबित करती है. मैंने ऐसे कई लोगों को जनता हूँ जो ऐसा करते हैं वो फेसबुक पर बहुत ही लंगोटिया यार हैं लेकिन अंतर्मन से एक दुसरे को बिलकुल भी पसंद नही करते हैं. मैंने तो कईयों को ये कहते भी सुना है की मुझे यार उसको टैग, कमेंट और लाइक सिर्फ दुनिया को दिखाने की खातिर करना पड़ता है. इसका प्रभाव भी आपको कई बार देखने को मिल जायेगा जब आप अपने किसी दोस्त को टैग करेंगे और किसी को नही करेंगे तो वो वर्चुअल दुनिया की ये खुन्नस रियल दुनिया में निकलने लगता है. एक खास फीलिंग लाने के लिए हमे अपने दोस्तों के साथ ये दिखावा करना पड़ता है. लोग फेसबुक पर इन सारी चीजों को नोटिस करते हैं रहते हैं. जो हमारे दोस्ती बनने और बिगड़ने में एक महती भूमिका ऐडा करता है. फेसबुक से भी हमे कई लोगों की दोस्ती की हद का पता लगा सकते हैं और लगाते भी रहते हैं. बहुत लोग तो ये भी कहते आपको मिल जायेंगे की आजकल तुम उसकी फोटो पर बहुत कमेंट और लाइक दाग रहे हो. ऐसे ही तमाम वाकये को समेटे ये वर्चुअल दुनिया दोस्ती के मायने को प्रभावित करती है. आशा आप टैग, लाइक और कमेंट के मोहताज़ न होकर अपने रिश्ते को बेहतर बनाते रहेंगे और उसमे फीलिंग बरकरार रखेंगे..... 

Friday, August 15, 2014

कब मिलेगी असल आज़ादी......

लाल किले का भाषण हो गया, हर सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में झंडा फहरा दिया गया, मिठाई और फूलों के साथ देशभक्ति के तराने भी बजा लिए गये और हमने आज मना लिया आज़ादी का 68 वां जश्न. पर क्या ये सब एक दिखावा नही लगता है? क्या हर कोई इस जश्न में मन लगा रहा है? नही आप लोगों को क्या लगता है? सवाल मेरा नही है मेरी नजर का जवाब मिले तो ठीक है, नही मिलता है तो प्रश्न बना रहेगा. अभी एक मेसेज आया है आजादी के मौके पर बम्पर छूट सीधे 50% पर ये किसके लिए है. जिसके फ़ोन पर ये मेसेज आया है जो पहले वहां से पांच हज़ार से ज्यादा की खरीदारी कर चूका है. क्या इन ऑफरों का फायदा गरीबों को नही मिलना चाहिए या वो आज़ाद आज भी नही हैं. इंडिया वाले शाहरुख़ खान ने तो कह दिया की वो नया शब्द गढ़ रहे हैं. पर जो असल में इंडिया वाले हैं जो कभी भी इस देश के लिए कुर्बान होने को तैयार हैं और पहले भी इन्ही के कंधों से बन्दूक रखकर फायरिंग की जा चुकी है. क्या वो अभी इतना सक्षम हैं जो अपने तिरेंगे की लहर में खुश हो सके. आखिर कबतक गरीबों को मौके नही दिए जायेंगे या उन्हें नक्सली बनने को मजबूर किया जाता रहेगा. क्या वो लालकिले के संबोधन से अपना वास्ता बना पा रहे हैं या सिर्फ उनके झंडा फहराने के पहले का इंतजाम ही करेंगे. आये दिन अख़बारों में बलात्कार के मामले आते रहते हैं जो इस देश में इस वक्त सक्रमण की तरह फैला हुआ है. लेकिन मैं और आप भी देख और समझ रहे होंगे की बलात्कार जैसे वीभत्स मामले को हाई प्रोफाइल और लो प्रोफाइल के नजरिये से देखा जा रहा है. ऐसे क्या न्याय की उम्मीद की जाये की आरोपी को फांसी होगी या वो बाहर और बलात्कार करेगा. देश के किसान देशवासियों का पेट भरने में खुद पेट और पीठ एक किये दे रहा है. उसके खाद और डीज़ल के भाव को बढ़ाकर शहरी विकास किया जा रहा है. चीनी मिलों को ब्याज मुक्त ऋण दिया जा रहा है और किसानों को पैसा अभी तक नही दिलाया गया. अब बताइए क्या आज़ादी है सिर्फ उन्ही के लिए जो झंडा खरीदकर अपनी कारों में लगाकर चल सकते हैं. उच्चवर्ग अपनी सफलता को इतना ऊँचा कर चुका है जहाँ से नीचे के लोग गूगल मैप की तरह नजर आ रहे हैं. नीचे और ज़मीन से जुढ़े लोग ऊपर वालों की तरफ नजर गड़ाए टुकुर टुकुर देख रहे हैं की कब वो लोग ज़ूम बटन का इस्तेमाल करेंगे. तो हम लोग भी आजादी मना लेते हैं. कपड़े वाला तिरंगा ही फहरा लेते. जय हिन्द .......