Saturday, October 17, 2015

जिया हो बिहार के लाला...... बिहार चुनाव बहुतों का सबकुछ लगा है दांव पर

जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है कि बिहार के चुनाव में कुछ न कुछ अप्रत्याशित होने वाला है, जो इस बिहार का भविष्य बदलकर रख देगा. इस चुनाव बिहार के ही नही देश के कई बड़े नेताओं का सबकुछ दांव पर लगा है. जिनमे खास लोगों में स्वयं भारत के प्रधानमन्त्री मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश, लालू यादव, जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान जो केंद्र में मंत्री भी हैं. ऐसे में बिहार की तरफ पूरा देश मुहं उठाये ताक रहा है.  
बिहार एक ऐसा राज्य है, जो देश की राजनैतिक में हमेशा अपना अलग ही स्थान बनाये रखता है. वास्तव में ये राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा पिछड़ेपन का शिकार रहा है. यहाँ इतनी गरीबी है कि यहाँ के लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करके जीवनयापन करने को मजबूर हैं. इस वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव का मौसम चल रहा है और बिहार ने हमेशा से ही देश की राजनीति में अपने अहमियत को साबित किया है. पूरे देश की नजर इस वक्त बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा उसका इन्तजार कर रहे हैं. प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है. बिहार राज्य की अपनी खासियत है कि वहां की जनता किस तरह जनाधार दे दे ये कोई हवा में नही कह सकता है. गरीबी और अशिक्षा होने के नाते बिहार के लोग जातिवाद से काफी घिरे हुए हैं और इस मुद्दे को यहाँ की राजनीति में काफी निर्णायक पक्ष माना जाता है. यहाँ की सबसे पिछड़ी जाती महादलित है और सबसे अगड़ी जाति में भूमिहार आते हैं. नीतीश कुमार और लालू यादव ने बिहार में बीजेपी को रोकने के लिए सबसे बड़ा और अकल्पनीय महागठबंधन करके सियासत के सारी चाल ही पलट दी है. एक ज़माने में बीजेपी के साथ मिलकर लालू यादव की सत्ता को जंगलराज कहकर उखाड़ फेंका था. लेकिन सुशासन बाबू नीतीश की लोकसभा चुनावों में बीजेपी के नरेंद्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार बनाने की वजह से बीजेपी से अपना अलगाव कर लिया. लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद बीजेपी ने न सिर्फ केंद्र में अपनी सरकार बनाई बल्कि नरेंद्र मोदी देश के आज प्रधानमन्त्री भी बने. लेकिन अब जब बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू ने बीजेपी को रोकने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है. तो ये बात काफी वास्तविक हो जाती है कि बिहार के मेहनती लोग इसबार कुछ नया ही रुझान देश के समक्ष पेश करेंगे. जिसके आगे हो सकता है सारे एग्जिट पोल धरे के धरे रह जाएँ.
अब बात आती है कि बिहार चुनाव ये दोनों बड़े गठ्बन्धन किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं, ये बात काफी काबिले गौर है कि बिहार देश का अति पिछड़ा राज्यों में से एक है. और वास्तविकता में यहाँ ये देखकर हैरानी होती है कि जो बिहार के चुनाव नेताओं का भाषण सुनने को मिल रहा है. वह पूरी तरह तुच्छ राजनीति के तहत एक दुसरे के ऊपर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप और जातिगत आंकड़ों को साधने तक सीमित हो गयी है. एक तरफ लालू-नितीश गरीबों के मसीहा बनना चाह रहे हैं. तो दूसरी तरफ बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे का सहारा लेकर विकास की गोली देने के जुगत में लगी हुई है. देश पिछले कुछ समय से अंतर्कलह और नयेपन में ढलने में लगा हुआ है. जिसकी वजह बहुत सारी विसंगतियाँ उभरकर सामने आ रही हैं. बिहार में वोट मांगने के इस तरीके को जायज अथवा नाजायज ठहराने के लिए एक बार फिर फैसला बिहार की जनता के हाथ में है. जो हर बार की तरह इसबार भी चौंकाने वाला आना चाहिए.



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