Saturday, July 13, 2019

क्या होता है सरवाइकल कैंसर


ज्यादातर कैंसर की तरह ही सरवाइकल कैंसर की भी शुरूआत सेल से ही होती है। गर्भाशय का निचला हिस्सा धीरे-धीरे कंट्रोल से बाहर होने लगता है। जिसके बाद नए सेल तेजी से विकसित होते हैं और गर्भाशय ग्रीवा में ट्यूमर आकार ले लेता है।

Image result for cervical cancer

पूरी दुनिया में सरवाइकल कैसर महिलाओं में सबसे ज्यादा पाया गया है। हालांकि सामान्य पेप टेस्ट के जरिए इसकी जानकारी शुरूआती स्टेज में हो सकती है। इसके अलावा सरवाइकल कैंसर को रोकने के कई उपाय हैं, जिसकी वजह से इसके केस में कमी आई है।

सरवाइकल कैंसर कितना कॉमन है


सरवाइकल कैंसर बहुत ज्यादा ही कॉमन है, खासतौर पर महिलाओं में ये खूब लोकप्रिय है। ये मरीज को किसी भी उम्र में अपना शिकार बना लेता है, इसके रिस्क फैक्टर को कम करके इससे बचाव जा सकता है। कृपया अपने डॉक्टर से जरूर सलाह लें।

इसके लक्षण जानें


शुरूआती स्टेज में किसी भी कैंसर का लक्षण तबतक समझ में नहीं आता है, जबतक ट्यूमर नहीं विकसित हो जाता है। ये महिलाओं के ऑर्गन के पास उभरता है और स्वस्थ सेल को खराब करता है।

योनि से असामान्य खून का आना, मासिक धर्म के बीच में, लंबे समय तक मासिक धर्म का बरकरार रहना, सेक्स के बाद या दौरान, मासिक धर्म के बाद, मल त्याग करने के दौरान या फिर खोक संबन्धी जांच(पेल्विक परीक्षण) के दौरान खून का आना भी सरवाइकल कैंसर का लक्षण है।

उदर के निचले हिस्से दर्द होना, सेक्स करने के दौरान दर्द होना, योनिश्राव असामान्य या उसमें खून न निकलना भी इस बीमारी का लक्षण है।

इसके अलावा अन्य परिस्थितियों में जैसे इंफेक्शन की वजह से भी इस तरह के लक्षण हो सकते हैं। हालांकि चीजें हाथ से निकलें न उससे पहले इसके लक्षण का पता चलते ही जल्द से जल्द डॉक्टर की सलाह लें।

वैसे अगर सही मायने में स्वस्थ व खुशहाल रहना है, तो नियमित रूप से पेप टेस्ट और पेल्विक परीक्षण कराते रहें। क्योंकि ऐसे भी लक्षण हैं, जिनका जिक्र उपरोक्त में नहीं है, इसलिए अगर कोई समस्या होती है तो डॉक्टर से जरूर सम्पर्क करें।

डॉक्टर से कब मिलें


यदि ऊपर दिए गए लक्षणों में आपको कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है या इसके अलावा कोई और सवाल हो तो अपने डॉक्टर से फौरन सलाह लें। क्योंकि हर किसी का शरीर अलग व्यवहार करता है, इसलिए डॉक्टर की सलाह सर्वश्रेष्ठ होती है।

सरवाइकल कैंसर के कारण


सरवाइकल कैंसर के लगभग सभी केस में मानव जनित पेपिलोमावायरस या एचपीवी ही मुख्य वजह होता है। ये वायरस दो व्यक्तियों के यौन संबन्ध बनाने के दौरान ट्रांसपर हो जाता है। यूं तो तकरीबन 100 तरह के सरवाइकल कैंसर होते हैं, लेकिन सभी नुकसानदायक नहीं होते हैं।

वास्तव में जीवन के किसी न किसी मोड़ पर दो वयस्क एचपीवी वायरस के संपर्क में आते हैं। लेकिन कुछ एचपीवी से कोई नुकसान नहीं होता है, जबकि कुछ से इसके लक्षण दिखने लगते हैं और सरवाइकल कैंसर को विकसित करते हैं। एचपीवी 16 और एचपीवी 18 की वजह से 70 फीसदी केस सरवाइकल कैंसर के जिम्मेदार होते हैं। हालांकि इनके लक्षण जल्दी पता नहीं चलते हैं और बहुत सी औरतों को इसका आभास भी नहीं होता है। 

एचपीवी पेप टेस्ट से आसानी से पता किया जा सकता है। यही वजह है कि पेप टेस्ट सरवाइकल कैंसर में सबसे ज्यादा अहम है, पेप टेस्ट सरवाइकल सेल को कैंसर से पहले खोज निकालता। अगर आप इन सेल में बदलाव महसूस करते हैं, तो सरवाइकल कैंसर से बच सकते हैं।

Friday, January 1, 2016

कैसा रहा साल 2015 में भारत आइये डालें एक नजर

1.नीति आयोग :केंद्र सरकार ने योजना आयोग को बदलकर 1 जनवरी 2015 नीति आयोग के गठन की घोषणा की. नीति आयोग भारत सरकार की आर्थिक हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए गठित किया गया है. ये थिंक टैंक राज्य सरकारों और संघ शासित प्रदेशों के लिए भी काम करेगा.
2. दिल्ली में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार : नई दिल्ली राज्य चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतकर सरकार बना लिया.

3. नीतीश एक बार फिर संभाली बिहार की गद्दी: अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधान सभा चुनाव में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस के महागठबंधन को भारी जीत हासिल हुई. पांच चरणों में हुए इस चुनाव में अबतक का सबसे ज्यादा मतदान हुआ और लोगों की पहली पसंद राजद बनी जिसने 80 सीटों पर जीत हासिल की और नीतीश कुमार प्रदेश के पांचवी बार मुख्यमंत्री बने.
4.  अमरावती बनी  आंध्र प्रदेश की नई राजधानी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 अक्टूबर को विश्व स्तरीय रिवरफ्रंट राजधानी अमरावती की नींव रखी. इस मौके पर राज्यपाल ईएसएल नाराशिमान, के रोसैया,मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव भी मौजूद थे.
5. हार्दिक पटेल आंदोलन: हार्दिक पटेल जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता हैं ने शिक्षा और सरकारी नौकरियों में पाटीदार जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग के आरक्षित कोटे के तहत आरक्षण दिलाने के लिए आंदोलन किया. 'जय सरदार ' का नारा देकर पटेल ने काफी भीड़ इकठ्ठा की. साथ ही इस आंदोलन में उन्होंने हथियार और सामाजिक मीडिया का भी इस्तेमाल किया. पटेल को तिरंगे का अपमान करने और हत्या की धमकी देने के मामले के तहत पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
6.   बजट 2015: इस बार बजट में सुरक्षित भारत स्कीम के तहत निर्भया फंड, स्किल इंडिया को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के रोजगार बढ़ाने के लिए और ग्रीन इंडिया के तहत 100 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया. जहां अक्षय ऊर्जा को विनियमित करने और बुनियादी ढांचे के विभिन्न क्षेत्रों को कारगर बनाने का भी प्रावधान किया गया.
7.   गिव इट अप अभियान: पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री, धर्मेंद्र प्रधान  इस अभियान की शुरुआत की और अमीर लोगों से एलपीजी सब्सिडी छोड़ने का आग्रह किया.
8. प्रधानमंत्री की योजनाएं  : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निम्न मध्यम वर्ग के लिए तीन समाजिक सुरक्षा योजनाओं का शुभारंभ किया. ये योजनायें प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और अटल पेंशन योजना हैं. इससे गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वालों को फायदा होगा. प्रधानमंत्री ने आम आदमी के लिए पारदर्शिता लाने के लिए मई में डिजिटल भारत कार्यक्रम की शुरुआत की.
9.  एआईआईबी : एशियाई बुनियादी ढांचे के निवेश बैंक (एआईआईबी) एक प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था है, जो अब एशिया -प्रशांत क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेगी. भारत ने एशियाई बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए इस बैंक के साथ हस्ताक्षर करते हुए 8.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की मदद करने का भी वचन दिया.
10. मुद्रा बैंक का शुभारंभ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 अप्रैल को मुद्रा (माइक्रो यूनिट विकास और पुनर्वित्त एजेंसी) बैंक का शुभारंभ किया. इस बैंक का उद्देश्य छोटे और कमजोर वर्गों के लिए ऋण मुहैय्या कराना. जिससे लोगों के रोजगार के अवसर पैदा हों.
11. बंधन: भारतीय माइक्रोफाइनेंस कंपनी बंधन फाइनेंशियल सर्विसेज ने 28 अगस्त को भारत में बैंकिंग का शुभारंभ कर दिया. बैंक का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण आबादी को अच्छी बैंकिंग देना है. बंधन ने प्रारंभिक चरण में 500-600 शाखा और 10 लाख ग्राहकों तक पहुंचने का लक्ष्य बनाया है.

12. आईडीएफसी बैंक- इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसर आईडीएफसी को (आरबीआई) भारतीय रिजर्व बैंक ने 2014 में यूनिवर्सल बैंकिंग लाइसेंस दिया था. आईडीएफसी ने 1 अक्टूबर से भारत में बैंकिंग शुरूआत कर दी.
13. गोल्ड मोनेटायजेसन योजना: प्रधानमंत्री ने इस योजना की शुरूआत नवंबर में की. इससे अधिकृत बैंकों में लोग अपना सोना जमा करके उतना ही ब्याज पा सकते हैं.
14. सोना और चांदी हुआ सस्ता:30 नवंबर से सरकार ने आयात शुल्क में कटौती कर दी. जिससे कीमती धातुओं सोना और चांदी की कीमतों में गिरावट देखी गयी.
15.लिक्विड गोल्ड : साल 2015 में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कई उतर चढ़ाव देखने को मिला. नवंबर 2015 में इसका मूल्य क्रमश: 60.48 रुपये प्रतिलीटर और 46.55 रुपये प्रतिलीटर रहा.
16. स्वाइन फ्लू : फरवरी में भारत में एक बार फिर स्वाइन फ्लू का असर देखा गया.  जिसने सबसे ज्यादा रहा राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को प्रभावित किया. इस बीमारी ने 585 लोगों की जान ले ली.
17. डेंगू : दिल्ली में डेंगू के मामलों में भारी इजाफा हुआ और ये संख्या 10,683 पहुंच गयी. जो वाकई चौंकाने वाला रहा है, ये संख्या साल 1996 के बाद इस बार सबसे ज्यादा रही. डेंगू से इस साल भारत में 41 लोगों की जान चली गयी.  
18. भूकंप: अप्रैल में नेपाल और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में जोरदार भूकंप के झटके महसूस किये गये. इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.9 आंकी गयी.
19. खूनी भूस्खलन ने गांव को किया बर्बाद : 1 अगस्त को मणिपुर में तेज बारिश से विनाशकारी भूस्खलन ने एक ही गांव के 20 लोगों की जान ले ली. इस त्रासदी का असर म्यांमार सीमा से सटे मणिपुर के चंदेल जिले के दूरदराज के जौपी  क्षेत्र में भी रहा.
20. भारत रत्न : सबसे प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय मदन मोहन मालवीय को दिया गया. 
21.गूगल सर्च इंजन के नए सीईओ सुंदर पिचाई- इस वर्ष गूगल खोज के नए सीईओ के तौर पर भारतीय मूल के सुंदर पिचाई को नियुक्त किया गया. वर्ष १९७२ तमिलनाडु में जन्में पिचाई आईआईटी खड़गपुर से मेटालर्जी में इंजीनियंरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद इंजीनियरिंग में एमएस करने अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय चले गए. वहीं उन्होंने एमबीए भी किया. उन्होंने वर्षाे तक मैकेंजी कंपनी में काम किया. फिर वर्ष २००४ में गूगल कंपनी ज्वाइन की. उन्होंने जी-मेल और गूगल मैप एप्स तैयार किए जो रातों-रात लोकप्रिय हो गए. फिर उन्होंने गूगल के उत्पादों के लिए एंड्राइंड एप्प भी बनाया. गूगल के ब्राउजर क्रोम के पीछे भी इन्ही का दिमाग था.
22.नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति विद्या देवी’- नेपाल की संसद ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की उपाध्यक्ष विद्या देवी भंडारी को देश की पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में चुना है. नेपाल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि जब वहां पर राष्ट्रपति पद की कमान किसी महिला के हाथ में है. ५४ साल की भण्डारी सीपीएन-यूएमएल की उपाध्यक्ष एवम् पार्टी के दिवंगत महासचिव मदन भण्डारी की पत्नी हैं. विद्या देवी ने रामबरन यादव की जगह ली है, जिन्हें नेपाल को गणराज्य घोषित किए जाने के बाद २००८ में पहला राष्ट्रपति चुना गया था.
23.श्रीलंका के नए राष्ट्रपति सिरिसेना’- श्रीलंका में दस सालों से सत्ता में रहे महिंद्रा राजपक्षे को हराकर उनके शासन का अंत करके मैत्रीपाला सिरिसेना ने राष्ट्रपति की कुर्सी हासिल की. कभी महिंद्रा राजपक्षे के सहयोगी रहे सिरिसेना अब श्रीलंका के नए राष्ट्रपति हैं जिनका भारत के प्रति सकारात्मक रुख है. अपने पराजित प्रतिद्वंदी की तरह सिरिसेना भी कट्टर बौद्ध हैं. उनकी पृष्ठभूमि ग्रामीण है, वह अंग्रेजी नहीं बोलते और सार्वजनिक रूप से हमेशा ही श्रीलंका के राष्ट्रीय परिधान में नजर आते हैं.
24. साहित्य के लिए नोबल- बेलारूस की ७६ वर्षीय लेखिका स्वेतलाना एलेक्सीविच को इस बार साहित्य का नोबल पुरूस्कार प्रदान किया गया. स्वीडिश एकेडमी ने कहा की स्वेतलाना को बहुआयामी, मानवीय त्रासदी से जुड़े और अपने समय के साहसिक लेखन के कारण नोबल पुरूस्कार के लिए चुना गया. उन्होंने चश्मदीदों के हवाले से चेर्नाेबिल आपदा और द्वितीय विश्वयुद्ध का मार्मिक पक्ष पेश किया.
25. दीपिका पादुकोण की माई च्वाइस’- महिलाओं की जिंदगी से जुड़े पहलुओं पर आवाज उठाते हुए अभिनेत्री दीपिका पादुकोण माई च्वाइस नामक वीडियो में नजर आई, तो इंटरनेट पर धूम मच गई. वीडियो में दीपिका कहती हैं मैं अपनी पसन्द के हिसाब से जिंदगी गुजारना चाहती हूं. जैसा चाहूं वैसे कपड़े पहन सकूं, मर्द से प्यार करूं या औरत से, यह मेरी मर्जी है. शादी से पहले सेक्स करूं, शादी के बाद या न करूं,यह मुझ पर निर्भर है. इस वीडियो ने एक नई बहस छेड़ दी.
26. चर्चा में बजरंगी भाईजान’- इस साल अभिनेता सलमान खान की फ़िल्में बजरंगी भाईजान और प्रेम रतन धन पाओ तो कमाई के मामले में आगे रही ही ,‘हिट एन्ड रन केस में बरी होने के कारण भी वह काफी चर्चा में रहे. १३ साल पुराने इस मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए, उन्हें सभी आरोपो से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा की सलमान खान के खिलाफ जो सबूत पेश किए गए हैं, वे पर्याप्त नहीं है. उनके आधार पर उन्हें दोषी नही करार दिया जा सकता. सलमान ने ट्वीट करके परिवार, दोस्तों और प्रशसंको का शुक्रिया अदा किया. इस साल सलमान को उनके ५०वें जन्मदिन पर इससे अच्छा उपहार नही मिल सकता था.
27. हिंदी के हैशटैग’- ट्विटर पर इस साल अंग्रेजी के सामने हिंदी ने अपनी जगह बनाई. अक्सर अंग्रेजी में ट्रेड करने वाले हैशटैग इस साल हिंदी में नजर आया. महाशिवरात्री के मौके पर ट्रेंड करता दिखा क्ष्हरहरमहादेव. यही नहीं विश्वकप में भारत और पकिस्तान के मैच के दौरान क्ष्जयहिंद खूब ट्रेंड में रहा. वहीं हिंदू-मुस्लिम सम्बन्धों पर छिड़ी बहस ने जन्म दिया क्ष्असहिष्णुता को. वैसे भी बीते कुछ सालों में सोशल मीडिया पर हिंदी का चलन बढ़ता हुआ देखा जा रहा है. ट्विटर ने साल २०११ में यूजर्स की संख्या १० करोड़ पहुंच जाने पर हिंदी इनपुट की व्यवस्था की थी.
28. ५१वां साहित्य अकादमी पुरूस्कार -साल के आखिरी सप्ताह में प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार रघुबीर चौधरी को २०१५ का ज्ञानपीठ पुरूस्कार देने की घोषणा की गई. चौधरी की अमृता, सहवास, अन्तर्वास,वेणू वात्सल(उपन्यास), तमाशा और वृक्ष पतनमा(कविता संग्रह) उनकी प्रमुख रचनायो में शुमार हैं. इससे पहले उनकी कृति उप्रवास कथात्रयी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. पिछले वर्ष यह पुरस्कार मराठी साहित्यकार भलचंद्र नेमाडे को मिला था.
29. पीएम मोदी ने खेला साल २०१५ का आखिरी मास्टर स्ट्रोक- वैसे तो ये पूरा साल प्रधानमन्त्री मोदी के नपा-तुला रहा, जिसमें पूरे साल उनकी विदेश यात्रा की ही ज्यादा धूम रही. इसी क्रम में पीएम मोदी रूस से लौटकर अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पहुंचे. यहां से सीधे उन्हें वापस नई दिल्लीr आना था, पर बिना किसी पूर्व सूचना के उन्होंने अचानक ट्वीट करके जानकारी दी कि वे पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की बेटी को शादी की बधाई देने लाहौर जा रहे हैं. लाहौर में उन्होंने नवाज शरीफ से मुलाकात की और शाम को वापस दिल्लीr आ गए. इस पूरे घटनाक्रम ने समूचे विश्व की राजनीति में खलबली मचा दी और सभी ने प्रधानमंत्री मोदी के इस मजबूत निर्णय की जमकर तारीफ की. मोदी की अचानक लाहौर यात्रा ने भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में फिर से आशा की एक नई किरण जगा दी.
30. प्रभावी नेतृत्व एंजेला मोर्कल- जर्मनी की चांसलर एंजला मोर्कल ने यूरोजोन के संकट, सीरिया के शरणार्थी संकट और यूक्रेन में रूसी हस्तक्षेप के दौरान अपने प्रभावी नेतृत्व के कारण इस वर्ष की सर्वाधिक चर्चित हस्ती बनने का तमगा हासिल किया. टाइम मैगजीन ने भी उन्हें पर्सन ऑफ द ईयर चुना है. वर्ष २००५ में जर्मनी की पहली महिला चांसलर के रूप में सत्ता संभालने वाली मोर्कल निरन्तर अपनी पकड़ मजबूत करती गईं और २००७ में यूरोपीय संघ के दौरान मर्केल ने कड़े वित्तीय अनुशासन को अपनाया, तो आईएस के खिलाफ सैन्य अभियान में भी शामिल हुईं.

Monday, December 14, 2015

मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं

यूँ तो आज का लखनऊ अब समय के साथ काफी आधुनिक हो गया है. लेकिन अभी इस शहर का तहजीब और अदब का नुमाइशबाज माना जाता है. अपनी आधुनिकता में अभी यहाँ की बोली में पहले आप का चलन है. गोमती नदी के किनारे बसा ये शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी है. राजनीतिक रूप में लखनऊ हमेशा देश की सरकार के बनने बिगड़ने में अपना हस्तक्षेप रखता आया है. लेकिन लखनऊ अपने समृद्ध ऐतिहासिक धरोहरों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है. इसे अवध के नाम से भी जाना जाता है. अगर बनारस की सुबह सबसे खूबसूरत होती है, तो लखनऊ की शाम. 18वीं शताब्दी में यहाँ शिया नवाबों ने अपने शासन के दौरान इसे बहुत खूबसूरत बनाया था. कला, खाना और रहन-सहन में ठाठी मिजाज के इन नवाबों ने लखनऊ बहुत शानदार गुम्बद और मीनारों वाले निर्माण कराए थे. जिनके में नाख्काशी और चित्रकारी का अनूठा संगम था. जो आज भी लखनऊ को नवाबों का शहर बनाती है. इस शहर को 18वीं सदी में स्वर्ण नगर और उर्दू में इसे सिराज-ए-हिन्द कहा जाता था. नवाबों के बनाये शानदार गुम्बद, मीनार और मकबरे उस ज़माने की कारीगरी को बयां करते हैं.....
आइये हम आपको उन्हीं में से कुछ चुनिन्दा जगहों के बारे में बता रहें हैं, जहाँ हमें अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान जरूर जाना चाहिए----

1.
  बड़ा इमामबाड़ा
वैसे हर कोई लखनऊ की तहजीब का कायल है. लेकिन इन तहजीबों का कोई जीता जागता उदहारण है, तो वह यहां की मुगल समय की इमारतें जो खुद में किसी तहजीब से कम नहीं हैं. इसलिए अगर आप लखनऊ की विरासत को गौर से देखना और समझना चाहते हैं. तो आप पुराने लखनऊ में स्थित बड़ा इमामबाड़ा यानी कि भूलभुलैया का एक बार भ्रमण जरुर करें. ये मुगलिया इमारत अद्भुत नक्खाशी और मुगल कला का शानदार परिचय देता है. ये न सिर्फ लखनऊ की शान बढ़ाता है, बल्कि लखनऊ के इतिहास और संस्कृति का अनूठा नगीना है.
ऐसा माना जाता है कि मुग़ल काल में भीषण सूखा पड़ने के कारण मजदूरों के लिए काम मुहैया कराने के लिए नवाब आसफउद्दौला ने सन 1784 में कराया था. जिससे लोगों को रोजगार और अपने जीवनयापन के लिए मुग़ल ख़जाने से खाने और रहने का इंतजाम भी हो सके. ये उस जामने में गोमती नदी के तट पर बनाया गया था जिसके पीछे से होकर नदी बहती थी. हालाँकि अब ये नदी यहाँ नाले में तब्दील हो गयी है. यहाँ आकर मन में सबसे पहला सवाल यही आता है कि कैसे इतनी पुरानी इमारत आज भी इतनी जीवंत हो सकती हैं. इसका भूलभुलैया नाम इसलिए है क्यूंकि इसमें पहली बार बिना गाइड आप वापस निकल नहीं पाएंगे. क्यूंकि इसके दरबों में आपस में बड़ी समानता है. इसके परिसर में एक मस्जिद भी है, जहाँ गैरमुस्लिम नहीं जा सकता है.
2.रूमी दरवाजा
  जब आप बड़ा इमामबाड़ा से थोड़ा आगे बढ़ेंगे, तो एक भव्य दरवाजा दिखाई देगा. जो मेन रोड पर ही निर्मित है इसकी ऊंचाई 60 फीट है. इसे देखकर आपको भारत के दो प्रसिद्ध जगहों की याद आ जाएगी. पहला दिल्ली का इंडिया गेट दूसरा मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया है. यहाँ ये कहना भले ही अतिश्योक्ति होगी लेकिन मुझे तो एकबारगी ये गेटवे ऑफ़ लखनऊ लगा. रूमी दरवाजा को देखकर मन रुक जाता है. गजब की नक्खासी ऐसे मानो किसी ने एक-एक कोर बड़ी ही तबियत से बनाया हो. इस दरवाजे से इधर पुराने लखनऊ में आवागमन भी होता है. इसका निर्माण भी बड़ा इमामबाडा के साथ ही कराया गया था. इसे तुर्किश गेट भी कहते हैं.
3.घंटाघर (क्लॉक टावर)
यूँ तो भारत में बहुत सारे घंटाघर हैं, लेकिन लखनऊ का घंटाघर अपने आप में बहुत ही खास है. रूमी दरवाजे से कुछ ही कदम जैसे आपन आगे बढ़ेंगे. आपको दायें हाथ पर 221 फीट ऊँचा घंटाघर दिखाई देगा. जो भारत का सबसे ऊँचा घंटाघर है. इसका निर्माण नवाब नसीरुद्दीन ने सन 1887 में अंग्रेजी वास्तुकला में अवध प्रान्त यानी लखनऊ के पहले लेफ्टिनेंट गर्वनर जार्ज कूपर की अगुवाई करने के लिए कराया था. हालाँकि इतिहास को संजोने में हम भारतीय हमेशा ढुलमुल रहे हैं, तो अभी घंटाघर के आसपास रेनोवेशन का काम चल रहा है. लेकिन हम इसे देखकर प्राचीन काल की कारीगरी को सलाम कर सकते हैं. इसी के पास 19वीं सदी में पिक्चर गैलरी का निर्माण भी हुआ था. जिसमें लखनऊ के सभी नवाबों की तस्वीरें और उनके इतिहास के बारे में हमें अच्छी जानकारी मिल सकती है. इस पिक्चर गैलरी के माध्यम से हम लखनऊ के अतीत में झांक सकते हैं.    
4.छोटा इमामबाड़ा
घंटाघर से थोड़ी दूर और बढ़ेंगे तो हमें एक और शानदार मुगलिया निशानी देखने को मिलेगी. इसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहते हैं. जिसका निर्माण मोहम्मद अली शाह ने सन 1837 के आसपास कराया था. किले के दरवाजे जैसा गेट इस खूबसूरत इमारत का आकर्षण और बड़ा देती है. इसका गुम्बद बहुत ही चमकदार है. इसमें लोगों और यहाँ के गाइड के मुताबिक मोहम्मद अली शाह और उनकी माँ को यहीं दफनाया गया था. इसके ठीक विपरीत दिशा में एक अधूरा घंटाघर भी बना हुआ है. जो सतखंडा नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नवाब यहाँ से अपनी बेगम के साथ ईद के दिन चाँद को निहारने के लिए इसे बनवा रहे थे. सन 1840 में मोहम्मद अली शाह के मृत्यु हो गयी थी. जिसकी वजह से इसके निर्माण को रोक दिया गया था. तब ये मात्र चार मंजिल ही बन पाया था. जिसे अब सरकार पूरा करवा रही है.
5. जामी मस्जिद
जब हम छोटे इमामबाड़े के अंदर होते हैं तो हमें एक शानदार गुम्बद उसके ठीक पीछे नजर आती है. इतनी भव्य कि मैं उसके बारे नहीं जनता था. लेकिन उसकी खूबसूरती ने मुझे ऐसे अपनी ओर खींचा मैं खुद को रोक नहीं पाया. यकीन मानिये अगर आपकी भी नजर इन गुम्बदों पर पड़ गयी तो आप भी खुद को रोक नहीं पाएंगे. इतनी नफासत इस मस्जिद में जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. रूमी दरवाजे वाली ही रोड से हम थोड़ी दूर आगे बढ़ेंगे. जहाँ से हम हरदोई रोड पर यूनिटी कॉलेज की तरफ जायेंगे. उसी के बगल से एक रास्ता जामी मस्जिद की तरफ गया है. अदभुत और लखनऊ की सबसे विशाल मस्जिद. इस मस्जिद का निर्माण का नवाब शाह मोहम्मद अली ने शुरू करवाया था. लेकिन उनके देहांत के बाद उनकी बेगम ने इस मस्जिद को पूरा करवाया. मस्जिद अंदर की चित्रकारी आज भी दुनिया की सबसे अनमोल चित्रकारियों में आती है. जामी मस्जिद के अंदर गैर मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है.    




Saturday, November 28, 2015

कठिन शब्दों में आता था मैं-असहिष्णुता

हिंदी मध्यम में जिसने भी पढ़ाई की होगी उसे करीब कक्षा तीन से कठिन शब्द सिखाये गये होंगे. हम इमला लिखते वक्त इन्हीं शब्दों को लिखने में असमर्थ हुआ करते थे. ऐसे में बीते कुछ दिनों से एक शब्द है असहिष्णुता जो आज पल भर में बखेड़ा खड़ा कर देता है. वास्तव में ये तब जितना कठिन था, आज लोग इसका इस्तेमाल उतनी ही आसानी  से कर देते हैं. भले ही बचपन में हिंदी के पीरियड में इमला लिखते वक्त इस शब्द से लोग दूर ही भागते फिरते रहे हों. लेकिन आज जैसे सबलोग इस शब्द को अपने पजामे के नाड़े में बांधे घूम रहे हैं.
खासकर वो लोग जो आज ज्यादा जाने-पहचाने और पढ़े-लिखे होशियार माने जाते हैं. मीडिया में जो एंकर इस शब्द से कनी काटता फिर रहा था. आज कैमरे के सामने पहुँचने से पहले इसके बोलने में कहीं उच्चारण न बिगड़ जाये उसके लिए घर में.रास्ते में, अपनी बीबी/पति/सोकॉल्ड दोस्त अथवा प्रेमी और सीसे के सामने इसका खूब रियाज करता है. लिखने वाला पत्रकार या कॉपी राइटर अपने दिमाग तब पूरा जोर लगा देता है, जब उसे असहिष्णुता लिखना होता है. साथ ही बहुत से कॉपी एडिटर इसको लिखने के लिए गूगल का शरण लेते हैं. अब बताइए कितना माथापच्ची एक अदने से शब्द ने बड़ा दिया है.
खैर अब आते हैं, इस शब्द से घबराहट महसूस करने वाले लोगों पर जो खामखाँ देश ही छोड़ देना चाहते हैं. किसी की बीबी कहती है तो किसी का खुद ब्लड प्रेशर हाई-लो हो रहा है. ऐसे में अब ये शब्द अब मजाक की तरफ बढ़ रहा है. आखिर ये शब्द आया कहां से और किस भाषा से लिया गया है. तो ये संस्कृत भाषा का शब्द जो आज लोग सामान्य तौर पर बिलकुल ही नहीं उपयोग में लाते हैं. लेकिन हिंदी में ये शब्द संस्कृत से सीधे उठा लिया गया है. तो मजबूरी में लोग इसके उपयोग को मजबूर हैं. साथ ही अगर मशहूर होना है, तो बोलना तो पड़ेगा ही.
सबसे पहले इस शब्द का उपयोग किया पूर्व प्रधानमंत्री नेहरु कि नातिन ने जिन्हें इमरजेंसी और सिख दंगों से पहले साहित्य अकादमी का पुरुष्कार मिला था. साथ ही ज्यादातर युवा पीढी उन्हें तब जान पायी कि वह कौन हैं, जब उन्होंने अपना सम्मान इस शब्द के आड़ में वापस करने की बात सार्वजानिक की. फिर क्या था एक नया ही ट्विटर ट्रेंड चल गया #अवार्डवापसी. कुछ लोग तो जल्दबाज़ी में इस अभियान का हिस्सा बन गये बाद में उन्हें पछतावा भी हुआ. इन लोगों ने देश की अन्य बुनियादी समस्याओं से सरकार का ध्यान हटाकर अपने किताबों और अपने कारनामों की तरफ कर लिया. उधर किसानों की आत्महत्या में इजाफा हो रहा था. इधर को चमकाने के लिए सम्मान लौटाए जा रहे थे. उधर गांवों से लोग शहरों कि तरफ पलायन कर रहे थे. तो कुछ लोग अपनी तकलीफ और एसी में घुटन की वजह से अपने राष्ट्रीय पुरुस्कारों को वापस फेंके जा रहे थे. बाजारवाद से जूझ रहे देश का पहला कोर्ट माने जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खासकर टीवी इसे आत्महत्या से ज्यादा जरूरी मुद्दा मानते हुए, ब्रेकिंग न्यूज़ बनाये जा रहा था. प्राइम टाइम से सूखा गायब था अवार्ड वापसी का झंडा बुलंद किया जा रहा था. प्रधानसेवक ट्रेवलसिकनेस से परेशान चोली दामन लेकर यात्रा पर निकल गये. अवार्ड वापस करो या तुम सूखा से मर मिट जाओ.
लेकिन अब इस शब्द का मर्म देखो जिसने बोला उसकी लाइफ झिंगालाला. फिल्म आने वाली है बोल दो, कूड़ा हो रहे हो बोल दो और कोई मुद्दा नहीं है राहुल बाबा तुम भी बोल दो. फिर भी मैं असहिष्णु हूँ थोड़ा तो कठिन हूँ, बोल ले गये तो बिना वजह के वजह बन जाओगे. शाम में टीवी पर चर्चा बन जाओगे. फिर भी कठिन हूँ, जुबान एक बार झेल नहीं पाती है. लेकिन जब निकलता हूँ, तो सबके कान भी झल्ला उठते हैं. कुछ लोग तो आपको पाकिस्तान का टिकट भी भिजवा देंगे अगर पता उन्हें दे दो तो..........   

Monday, November 9, 2015

बिहार की हार बिहारी की जीत : बिजली दें तब न लाइक करेंगे स्टेटसवा को (बिहार चुनाव परिणाम )

सब कोई बिहार पर बोल रहा है, हमसे भी नहीं रहा जा रहा है. तो हम भी बोल रहा है, चारा घोटाले वाले लालू और सुशासन बाबू नीतीश कुमार ने कांग्रेस को जोड़कर महागंठबंधन बनाकर बिहार से प्रधान सेवक को खदेड़ दिया है. अब बात आती है ई सब कैसे संभव हुआ की साल भर पहले जिस मोदी ने बिहार की जनता का दिल जीतकर लालू और नीतीश को केंद्र की राजनीति से दूर कर दिया था. वह ऐसे बैरंग होकर विधान सभा चुनाव से लौटे. मैंने अभी कुछ दिन पहले अनुमान लगाया था कि बिहार में एनडीए आराम से अपने काम भर का सीट जीत कर खुद को सेट कर लेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. असल में बिहार बड़े जिद्दी टाइप के लोग हैं. जो मोहब्बत के लिए पहाड़ काट डालते हैं. लेकिन जब नफरत का रथ निकलता है, तो उसे भी बिहारी लालू ही रोंकते हैं. तो बिहार में देश के कई अनोखे लोग और घटनाएँ देखी या सुनी जाती हैं. जो वास्तव में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बेहद ही अनूठी हैं. हम बिहारी नहीं और न ही हमने वोट किया है. लेकिन मैं बिहार के कई ऐसे लोगों को जानता हूं जो इस देश की राजनीतिक दशा और दिशा समय-समय पर बदलते हैं आये हैं. आप जब पिछला चुनाव जीते थे लोकसभा वाला तो क्या बोले थे. वह कला धन एक झटके से देश कि जनता के खाते में 15-15 लाख जनधन वाले खाते में डलवा देंगे. लेकिन बाद में जब जीत गये तो आप खांखने लगे. आप वही बात कहने लगे जो कांग्रेस कहती आयी है. मैं कहता हूं कि चलो माना कि कानूनी अड़चने आ रही हैं. तो फिर आप मुख्य विपक्षी दल थे तो आप को ये नहीं पता था कि जो बोल रहे हैं वह कर पाएंगे कि मौके पर वोट ही लेना था. ये आपका फ्राड नम्बर एक है. दूसरा महंगाई कांग्रेस बड़ा रही थी. किसका दाम बढ़ता था प्याज और टमाटर का अपने उसमें घटाया क्या साथ दाल का डबल डोज देकर हमें सब्जी चावल खाने पर मजबूर कर दिया. तीसरा और सबसे अहम बात आपने किसानों के लिए क्या किया? आत्महत्या का पूरे देश में दौर चल रहा है और आपको विदेशी दौरों से फुर्सत ही नहीं है. मुझे तो ये लगता है जितनी बार आप ओबामा से मिले हैं उतनी बार शायद ही आप देश के किसानों से मिल पायें हों. बाकी देश के गांव आज भी एक अदद बुनियादी सुबिधाओं जैसे स्कूल, पानी, शौचालय, रोड और जनउपयोगी मूलभूत सुविधाओं से दूर है. रही बात आपके डिजिटल भारत के सपने की तो पहले लाइट नेटवर्क देंगे तभी न हम आपके  फेसबुक स्टेटस को लाइक कर पाएंगे.
अंतिम और आपके हार की वजह उलूल-जुलूल बोलने वाले सांसद जो आपके लहर और नाम से अपना सीट जीत लिए उनके बोल ऐसे रहे जो आपको प्रधानमंत्री नहीं प्रधान मोदी बना डाले. वह तो गाय गोरु की बात करने लगे. जैसे गाय दूध नहीं वोट देती हो, और खुद उनका मुंह गोबर जैसे फेंक रहा हो. एक बात और आप अवार्ड वापसी वालों की तरफ ध्यान नहीं दिए वह काबिले तारीफ है. क्योंकि उन्होंने देश का खाया और देश की मिटटी पर मल त्याग दिए. उन्होंने कोई जमीन पर उतरकर काम नहीं किया है. वह सब पैसा चाहते हैं आपसे जो आप नहीं देंगे क्योंकि आप बनियाँ हैं.

तो अंत में मैं आपसे इतना कहना चाहूँगा कि आप आज भी भारत के प्रधानमंत्री बनने के सबसे योग्य दावेदार हैं. रही बात आप इस चुनाव से लोड न लें चाहें तो अमित शाह को योगा ज्वाइन करवा दें. काम करें आप अभी कुछ ऐसा नहीं किये हैं जिससे समाज का सबसे पिछड़ा वर्ग आपके प्रधान सेवक वाली सेवा का अहसास करे. बाकी अपने खच्चर घोड़ों पर लगाम रखें. टाइट करें कि अपने क्षेत्र के विकास की तस्वीर अपने फेसबुक अकाउंट अपलोड करें. लाइक मिले तो ठीक नहीं तो कमेंट के माध्यम से इसकी वजह जानने की कोशिश करें और बोले न सच में दुर्गन्ध आती साक्षी महराज के मुंह से. 

Saturday, October 17, 2015

इंडियन सुपर लीग और भारतीय फुटबॉल का भविष्य

क्रिकेट के दीवाने इस देश में किसी अन्य खेल को उतना तवज्जो नही मिलती चाहे वो दुनिया का सबसे चहेता खेल फुटबॉल ही क्यूँ न हो. लेकिन जब से फुटबॉल के लीग संस्करण की शुरुआत इंडियन सुपरलीग के तौर पर हुई है तब से मानो सोये हुए भारतीय फुटबॉल प्रेमी जग गये हों. ये तो रही बात फुटबॉल के प्रेमियों की इस खेल के प्रति झुकाव की. लेकिन अब जो बात हम आपको बताने जा रहे हैं वह है आईएसएल से भारतीय फुटबॉल के जीर्नौद्धार की.
जैसा की भारतीय फुटबॉल टीम दुनिया में उतनी जानी मानी नही है या ये कहें कि हम इस खेल में नौसिखिया हैं. लेकिन एशिया महाद्वीप में अन्य टीमों के मुकाबले हमारी पोजीशन थोड़ी ठीक थक ही है. आईएसएल की शुरुआत पिछले साल आईपीएल के तर्ज पर शुरू हुई थी. बॉलीवुड और क्रिकेट बड़े खिलाड़ियों और कॉर्पोरेट घरानों ने इसमें अपनी-अपनी टीमें खरीदी हैं.
सचिन, गांगुली, धोनी क्रिकेट से और अभिषेक बच्चन, ऋतिक रोशन जैसे सितारों ने इसमें टीम खरीदकर इसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है.
आईएसएल में बहुत सारे विदेशी खिलाड़ी भी भाग लेते हैं जिसकी वजह से भारतीय फुटबॉल का नाम पूरी दुनिया में हुआ है. विदेशी खिलाडियों के शामिल होने से भारत के उभरते हुए युवा खिलाड़ियों को भविष्य में अच्छा खिलाड़ी बनने में मदद मिलेगी. साथ ही बहुत सारे कोचिंग स्टाफ भी विदेशी हैं जो बड़े-बड़े क्लबों में कोच की भूमिका निभा रहे हैं. उनके आईएसएल में आने से देश नए खिलाडियों विश्वस्तर की जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी.
विदेशी खिलाडियों में क्लू उचे, हेल्डर पोस्टीगा,  गुस्तावो डॉस सैंटॉस, इलानो और रोबर्टो कार्लोस जैसे बेहतरीन खिलाड़ी अब इस लीग से जुड़े हुए हैं. इनके साथ में भारतीय खिलाडियों को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. जो शायद आईएसएल के बगैर सम्भव न हो पाता.
कोचिंग और अन्य स्टाफ में जीको जो, डेविड प्लाट, सीजर फ्लेसिय्स और पीटर टेलर जैसे कोचिंग स्टाफ की मौजूदगी से इसका सीधा फायदा भारतीय खिलाड़ियों को होगा.
पहले सीजन में मिली अपार सफलता से आईएसएल अपने दुसरे सीजन में भी काफी रोमांचक मुकाबलों के होने से इसका व्यवसायीकरण काफी बड़ गया है. जो इसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद जगाता है. इससे भारतीय फुटबॉल का भविष्य और चमकेगा और ये किसी सपने के हकीकत होने से कम नही होगा. जो हर घर में फुटबॉल पहुंचा सकता है.




जिया हो बिहार के लाला...... बिहार चुनाव बहुतों का सबकुछ लगा है दांव पर

जैसा की शीर्षक से स्पष्ट है कि बिहार के चुनाव में कुछ न कुछ अप्रत्याशित होने वाला है, जो इस बिहार का भविष्य बदलकर रख देगा. इस चुनाव बिहार के ही नही देश के कई बड़े नेताओं का सबकुछ दांव पर लगा है. जिनमे खास लोगों में स्वयं भारत के प्रधानमन्त्री मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश, लालू यादव, जीतन राम मांझी और रामविलास पासवान जो केंद्र में मंत्री भी हैं. ऐसे में बिहार की तरफ पूरा देश मुहं उठाये ताक रहा है.  
बिहार एक ऐसा राज्य है, जो देश की राजनैतिक में हमेशा अपना अलग ही स्थान बनाये रखता है. वास्तव में ये राज्य देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ज्यादा पिछड़ेपन का शिकार रहा है. यहाँ इतनी गरीबी है कि यहाँ के लोग दूसरे प्रदेशों में जाकर मजदूरी करके जीवनयापन करने को मजबूर हैं. इस वक्त बिहार में विधानसभा चुनाव का मौसम चल रहा है और बिहार ने हमेशा से ही देश की राजनीति में अपने अहमियत को साबित किया है. पूरे देश की नजर इस वक्त बिहार की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा उसका इन्तजार कर रहे हैं. प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की प्रतिष्ठा इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है. बिहार राज्य की अपनी खासियत है कि वहां की जनता किस तरह जनाधार दे दे ये कोई हवा में नही कह सकता है. गरीबी और अशिक्षा होने के नाते बिहार के लोग जातिवाद से काफी घिरे हुए हैं और इस मुद्दे को यहाँ की राजनीति में काफी निर्णायक पक्ष माना जाता है. यहाँ की सबसे पिछड़ी जाती महादलित है और सबसे अगड़ी जाति में भूमिहार आते हैं. नीतीश कुमार और लालू यादव ने बिहार में बीजेपी को रोकने के लिए सबसे बड़ा और अकल्पनीय महागठबंधन करके सियासत के सारी चाल ही पलट दी है. एक ज़माने में बीजेपी के साथ मिलकर लालू यादव की सत्ता को जंगलराज कहकर उखाड़ फेंका था. लेकिन सुशासन बाबू नीतीश की लोकसभा चुनावों में बीजेपी के नरेंद्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार बनाने की वजह से बीजेपी से अपना अलगाव कर लिया. लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद बीजेपी ने न सिर्फ केंद्र में अपनी सरकार बनाई बल्कि नरेंद्र मोदी देश के आज प्रधानमन्त्री भी बने. लेकिन अब जब बिहार के विधानसभा चुनाव में नीतीश और लालू ने बीजेपी को रोकने के लिए पूरा दमखम लगा दिया है. तो ये बात काफी वास्तविक हो जाती है कि बिहार के मेहनती लोग इसबार कुछ नया ही रुझान देश के समक्ष पेश करेंगे. जिसके आगे हो सकता है सारे एग्जिट पोल धरे के धरे रह जाएँ.
अब बात आती है कि बिहार चुनाव ये दोनों बड़े गठ्बन्धन किस मुद्दे पर लड़ रहे हैं, ये बात काफी काबिले गौर है कि बिहार देश का अति पिछड़ा राज्यों में से एक है. और वास्तविकता में यहाँ ये देखकर हैरानी होती है कि जो बिहार के चुनाव नेताओं का भाषण सुनने को मिल रहा है. वह पूरी तरह तुच्छ राजनीति के तहत एक दुसरे के ऊपर व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप और जातिगत आंकड़ों को साधने तक सीमित हो गयी है. एक तरफ लालू-नितीश गरीबों के मसीहा बनना चाह रहे हैं. तो दूसरी तरफ बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे का सहारा लेकर विकास की गोली देने के जुगत में लगी हुई है. देश पिछले कुछ समय से अंतर्कलह और नयेपन में ढलने में लगा हुआ है. जिसकी वजह बहुत सारी विसंगतियाँ उभरकर सामने आ रही हैं. बिहार में वोट मांगने के इस तरीके को जायज अथवा नाजायज ठहराने के लिए एक बार फिर फैसला बिहार की जनता के हाथ में है. जो हर बार की तरह इसबार भी चौंकाने वाला आना चाहिए.